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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 इस महाकवि की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति एवं कारयित्री - प्रतिभा की अद्वितीय सूझ है। इसके काव्य के सौन्दर्य को भी एक नूतन आयाम प्रदान किया है। इसलिये इस कवि को उत्प्रेक्षाओं का अनूठा कवि कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं । वस्तुतः उत्प्रेक्षा में कल्पना को अधिक स्वातन्त्र्य और विकसित रूप से स्फुट भाव-भूमि मिलती है, जिसमें कोई रोक-टोक नहीं होती, जहाँ वह कल्पना को जगाने में सहायक होती है, कहीं भावों की उन्मुक्त अभिव्यंजना के लिए स्पष्ट एवं स्फीत बिम्ब सामने लाती है। 37 अन्य सादृश्यमूलक अलंकारों में यहाँ उपमा और रूपक का भी ऐसा ही सजीव एवं सौन्दर्यवर्धक नियोजन हुआ है । यथा- उजाड़ उपवन को मूर्ख मनुष्य के समान कहना, जिसका न तो कोई मत होता है और स्वयं भी वह नीरस होता है, कितना सटीक और सार्थक है, दर्शनीय है तादि उaaणु ढंखरुक्खु, मयरहियउ णीरसु णाइँ मुक्खु । 1.14.2 ऐसे ही राजमहल को हिमवन्त के शिखर के सामन कहकर एक साकार बिम्ब ही खड़ा कर दिया है तें दिट्ठ रायणिकेउ तुंगु, अझ्मणहरु णं हिमवंतसिंगु । 3.3.3 और मदनावली की विरहजन्य कृश देह को कृष्ण पक्ष की चन्द्र-रेखा की उपमा देना भी अतीव सार्थक है विहलंघल गयकल झीणदेह, कसणम्मि पक्खि णं चंदलेह । 3.6.5 किन्तु, राजा के चुनाव हेतु निकलनेवाले हाथी की उपमा सचमुच नव्यतम और उन्मेष-शालिनी है- हाथी मस्ती से चल रहा है, वह कान हिला रहा है तथा अपनी सूँड डुला रहा है, जैसे कोई प्रेमी अपनी विलासिनी के घर से निकल रहा हो - घराउ विणिग्गउ वारणु तुंगु, विलासिणिगेहहो णाइँ भुयंगु । 2.20.3 विद्याधरी का अपने प्रिय मदनामर खेचर को देखकर प्रेम - विह्वल होने की हृदयस्पर्शी व्यंजना उपमा के प्रयोग से ही चित्रित हो सकी है- वह पवन से आहत केली के समान काँप उठी, एकसाथ प्रेम मिश्रित आशंका से प्रकम्पित होना प्रथम मिलन की नैसर्गिकता को दृष्टि - गोचर कर रहा है डिय वायाहव केलि व कंपविय । संसार के प्रति अनासक्ति और वैराग्य की मन:स्थिति में दुःखों को समुद्र के समान तथा भोगों को मधु - बिन्दु के सदृश कहना बड़ा स्वाभाविक और मनोवैज्ञानिक हैरयणायरतुल्लउ जेत्थु दुक्खु, महुबिन्दुसमाणउ भोयसुक्खु । 9.4.8
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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