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________________ अपभ्रंश भारती 15-16 प्राचीन साहित्य में 'कथा' शब्द साधारण कहानी और अलंकृत काव्यरूप इन दोनों अर्थों में प्रयुक्त है। कहानी के अर्थ में वे सभी रचनाएँ इसके अन्तर्गत आ जाती हैं जिनमें कथा-तत्त्व का समावेश हो। हितोपदेश, पंचतन्त्र, महाभारत, रामायण, पुराणों के आख्यान, वासवदत्ता, कादम्बरी, गुणाढ्य की बृहत्कथा आदि कथा साहित्य है। यही नहीं चरितकाव्यों ने भी अपने को 'कथा' घोषित किया, परन्तु संस्कृत के आचार्यों ने कथा का विशिष्ट अर्थ लगाया है। उनके अनुसार यह एक काव्य-रूप है। भामह और दण्डी दोनों ने इसका अर्थ अलंकृत गद्य-काव्य से लिया है। आचार्य भामह ने इसी श्रेणी के एक काव्य रूप 'आख्यायिका' का भी उल्लेख किया है। उनके अनुसार सुन्दर गद्य में रचित सरस कहानीवाली रचना आख्यायिका है।' ___आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने आचार्यों के कथन के वास्तविक मर्म को उद्घाटित करते हुए निष्कर्ष निकाला कि- 'कथा में कल्पना की गुंजाइश अधिक होती है और आख्यायिका में कम। एक की कहानी काल्पनिक होती है और दूसरी की ऐतिहासिक। परवर्ती आलंकारिकों ने कादम्बरी को 'कथा' कहा है और 'हर्षचरित' को 'आख्यायिका'। काल्पनिक कहानी में सम्भावना पर बल दिया जाता है और ऐतिहासिक कहानी में नायक के वास्तविक जीवन में घटित तथ्य की ओर। परन्तु संस्कृत से इतर भाषाओं में कथा पद्य में लिखी जाती थी। प्राकृत में लिखी सबसे पुरानी कथा गुणाढ्य की 'बृहत्त्कथा' है। यह पूरा कथा-ग्रन्थ अप्राप्य है पर इसके एक अंश के अनुवाद के रूप में बुद्धस्वामी का 'कथासरितसार' प्राप्त है। इन सभी कथा ग्रन्थों का मूल उत्स गुणाढ्य की बड्डकहा (बृहत्कथा) है जिसकी मूल कथा पद्यबद्ध थी और वहीं से प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध कथाओं के लिखने की परम्परा शुरु होती है। ऐसा आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का विश्वास है। द्विवेदी जी का मानना है कि धनपाल की 'भविसयत्तकहा' इसी कड़ी का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह मान्य है कि धक्कड़ वंश में जन्मे धनपाल की माँ का नाम धणसिरि (धनश्री) और पिता का नाम माएसर (मायेश्वर) था। धनपाल ने अपभ्रंश साहित्य को दो रचनाएँ दीं'भविसयत्तकहा' और 'बाहुबलिचरिउ'। धनपाल को अपनी काव्य-प्रतिभा पर घमण्ड था। अपने आप को वह सरस्वती का पुत्र (सरसइ बहल्लद्ध महावरेण) कहते थे। डॉ. हरमन याकोबी इनका समय 10वीं शती मानते थे। प्रो. भायाणी ने 'भविसयत्तकहा' की भाषा को देखकर इसको स्वयंभू के बाद तथा हेमचन्द्र से पहले की रचना बताया है। राहुलजी के अनुसार ये सम्भवतः गुजरात के निवासी थे। राहुलजी इनका समय 1000 ईसवी मानते हैं। श्रुतपंचमी व्रत के फल के दृष्टान्त के रूप में धनपाल ने 'भविसयत्तकहा' की रचना की। इसे प्रथम व्यवस्थित कृति माना जाता है। कथा का पहला भाग शुद्ध घरेलू ढंग की
SR No.521860
Book TitleApbhramsa Bharti 2003 15 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2003
Total Pages112
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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