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अपभ्रंश भारती 15-16
सदगुरु स्वामिय संबोधीया, आ., मधुरीय सुललीत वाणितो। श्रावक व्रत लीयां रूवडा, आ., पाल्या अति सुख खांणितौ॥7॥ पहिलै स्वर्गि देव हुवौ, आ., सुख भोग का सविशाल तो। तिहां थका चवीकरी तम्हे हुवा, आ., महीचंद्रराजा गुणवंततो॥8॥ तेहमणी तम्ह मोह हुवौ, आ., इन्हं दीठा पुठे चंग तो। मोह वैर जीव उपनो, आ., भवांतर तणो उसंग तो॥७॥ कीघा करम न छूटीए, आ., राय सुणो तम्हें सार तो। ते सुख दुख जीव नीपजै, आ., तेस वि करम विचार तो॥10॥ तव राजा विनय करी, आ., बोल्यौ दुई कर जोडि तो। वरत कहो स्वामी निरमलौ, आ., जिम पापजाइ भव कोडितो॥11॥ तव सद्गुरु स्वामी बोलीया, आ., लव्धि विधाणक सारतो। भाद्रवामास उजालडो, आ., पडिवा बीज त्रीज कारतौ॥12॥ तीन उपवास कीजै नीरमला, आ., नहीं तो एकांतर चंगतो। त्रिणि दिवस सीयल पालो, आ., भूमि शयन गुणरंगितो॥13॥ संयम पालो निरमलौ; आ., सचित तणो परित्याग तो। धर्म ध्यान करौ रूवडो, आ., सरग मगति तणो भाग तो॥14॥ कुंकुम छडवु देवाडिये, आ., मोतिय चौक पूरावतो। सोवन सिंहासन मांडिये, आ., भावना अति बहु भावतौ॥15॥ महावीर तणां बीजं थापीये, आ., स्वामीय त्रिभुवन तारतौ। पंचामृत नम्हण करौ, आ., पूजा अष्ट पगारितौ॥16॥ त्रिणिकाल पूजा करो, आ., घवल मंगल गीत नाद तो। महोछव कीजै रूवडा, आ., जयजय करता साद तो॥17॥ अष्टौत्तर सौ रूवडा, आ., जाप दीजै अति चंगतो। जाइ सेवता उजला, आ., अपराजित मंत्र चंग तो॥18॥ स्तवन कीजै अति रूवडा, आ., छंदवस्त जयमालतौ। पांच नाम महावीर तणा, आ., कहउ सुणो गुणमालतो॥19॥