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अपभ्रंश भारती 15-16
वीरनाथ पहीलौ सुणो, आ., महावीर दुजो जांणितो। वर्द्धमान त्रीजौ कही, आ., अतिवीर चौथो आंणितो।।20।। सन्मति नाम पांचमो सही, आ., ए पांच नाम भवतारतो। अनुदीन जपीयै ध्याइये, आ., सुनता मुगति उछारतो॥21॥ इणि परि महोछव रूवडो, आ., करो तम्हे भवीयण सारतो। इणि परि पांच वरस करो, आ., भवियण तम्हे भवतारतो॥22॥ ॥दूहा॥ पछे उजवणो निरमलौ, करौ श्रावक अति चंग। जिणवर भुवण सोहावणो, शांतिक नम्हण उत्तंग॥1॥ अष्टोत्तर सो उजला, तांदुलतणा पुंज सार। तेह उपरि दीवा रूवडा, उजालौ गुणघार ॥2॥ ॥भास मालंतडानी॥ शत आठ फल रूवडाए, मालंतडे, विस्तारो गुणधार। पांच पांचवानां निरमलाए, सुणो सुंदरे, पकवान सविचार॥1॥ पांच खाजां मौदिक भलाए, मा., पांच घेवर आदि चंग। नालिकेर आदि रूवडाए, सु., फलविस्तार सुरंग।।2।। नेवज अक्षत विविध परीए, मा., उपकरण गुणवंत। पांच घंट जे गट सुणोए, सु. पांच कलस शृंगार ।।3।। घूप दहन अति रूवडाए, सु., पींगाणी सविसाल। चंद्रोपक सुहांवणांए, सु., चमर तोरण ध्वजपाल ॥4॥ पुस्तक पांच लिखावीयोए, मा., दीजो मुनिवर दान। संघपूजा वली रूवडीए, सु., साहमी वछल संघमान।।5।। शक्ति प्रमाने निरमलोए, भा., घनसारी गुणवंत। शक्ति विण भावघरीए, सु., दुणो करो जयवंत॥6॥ सह गुरु वाणी रूवडीए, मा. भवियण सुणो मवतार । लव्ध विधान व्रत निरमलोए, सु., श्रावक लीधौ सविचार॥7॥