SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 13-14 सचमुच, चाक्षुष-बिम्बों की योजना में कवि कनकामर अतीव कुशल और सिद्धहस्त हैं। जिस कवि में बिम्ब - विधायिनी क्षमता जितनी अधिक होती है वह उतना ही सफल एवं श्रेष्ठ कवि होता है। 68 अलंकार - सौन्दर्य में उत्प्रेक्षा का उपयोग और प्रयोग यहाँ अनेक स्थलों पर किया गया है तथा विविध बिम्बों की उद्भावना की है । लगता है जैसे उत्प्रेक्षा कवि का अत्यन्त प्रिय अलंकार है । किन्तु जिस मानवीकरण अलंकार को आधुनिक- हिन्दी के छायावाद की देन कहा जाता है उसका कलात्मक प्रयोग यहाँ दर्शनीय है। चौथी संधि में जब हाथी सरोवर में से कमल लेकर बामी की पूजा करके चला जाता है और करकंड उसके निकट आता है तभी राजा का स्वागत करता हुआ सरोवर कहता है - 'आइए, वह जल हस्तियों के कुम्भस्थलोंद्वारा कलश धारण किये था और तृष्णातुर जीवों को सुख उत्पन्न करता था। वह उच्च - दण्डकमलों द्वारा उन्नति वहन कर रहा था तथा उछलती मछलियों द्वारा अपना उछलता मन प्रकट कर रहा था और विविध विहंगों के रूप में नाच रहा था। फेन-पिण्ड रूपी दाँतों को प्रकट करता हुआ वह हँस रहा था एवं अति निर्मल तथा प्रचुर गुणों सहित चल रहा था । भ्रमरावली की गुंजार - द्वारा वह गा रहा था और पवन से प्रेरित जल के द्वारा दौड़ रहा था' आवंतहो तहो अइदिहि जणंतु । खगरावइँ आवहु णं भणंतु ॥ जलकुंभिकुंभकु भइँ धरंतु । तण्हाउरजीवहँ सुहु करंतु ॥ उद्दंड लिणिउण्णइ वहंतु । उच्छल्लियमीणहिं मणु कहंतु ॥ डिंडीरपिंडरयणहिं हसंतु । अइणिम्मलपउरगुणेहिँ जंतु ।। पच्छण्णउ वियसियपंकएहिं । णच्वंतर विविहविहंगएहिं ॥ गायंतउ भमरावलिरवेण । धावंतउ पवणाहयजलेण ॥4.7.2-7 ॥ - इस प्रकार निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि करकंडचरिउ का कवि सौन्दर्य का सच्चा चित्रकार है। साथ ही, सौन्दर्य-विधान में उसकी उर्वर कल्पना ने अनूठा योगदान दिया है। तभी तो अनेक भावात्मक प्रसंगों की उद्भावना करके कथा को रससिक्त कर दिया है जहाँ उसने विविध बिम्बों की अवतरणा की है वहाँ वर्णन में भी उत्प्रेक्षा अलंकार के सहारे सुन्दर चित्र ही निर्मित कर दिये हैं। रूप चित्रण और भाव आकलन में उसकी कारयित्री - प्रतिभा ने सचमुच कमाल ही कर दिया है। उसकी लोकानुभूति और लोक-जीवन के सूक्ष्म पर्यवेक्षण की क्षमता निराली है। इसी से वीतरागी संन्यासी होने पर भी उसने अपनी रसात्मकता का सहज परिचय दिया है और सौन्दर्य-विधान में कहीं अलंकारों के सहारे और कहीं कल्पना के द्वारा भव्य बिम्ब बनाये हैं जिनमें मधुरता है, सरसता है । सारांशतः उनका समूचा सौन्दर्य - विधान काव्य की रसानुभूति में सर्वत्र सफल है। उसके सौन्दर्य-बोध में अन्तःकरण का योग है तथा उसके चित्रण में गहन आन्तरिकता एवं आध्यात्मिक-वृत्ति का संचरण हुआ है। उसमें
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy