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अपभ्रंश भारती 13-14 कलात्मकता और भव्यता है।
Beauty and other forms of value - By S. Alexander, London, 1933, P. 179 सौन्दर्य-शास्त्र के तत्त्व- डॉ. कुमार विमल, पृष्ठ 108 Principles of literary criticism- By I.A. Richards, 1955, P. 231 करकण्डचरिउ, सम्पादक - डॉ. हीरालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 1.2, 5-7, पृष्ठ - 2 दुहन्त्योऽभिययुः काश्चिद् दोहं हित्वा समुत्सुकाः। पयोऽधिश्रित्य संयावमनुद्वास्यापरा ययुः ।। 5 ।। परिवेषयन्त्यस्तद्धित्वा पायन्त्यः शिशून पयः । शुश्रूषन्त्यः पतीन् काश्चिदश्रन्त्योऽपास्य भोजनम् ।।6।। लिम्पन्त्यः प्रसृजन्त्योऽन्या अजंन्त्यः काश्च लोचने । व्यत्यम्तवस्त्राभरणाः काश्चित् कृष्णान्तिकं ययुः ।।
- श्रीमद्भागवत, दसम् स्कंध, अध्याय 29, श्लोक 5-6
49-बी, आलोक नगर आगरा - 282 010