SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12 अपभ्रंश भारती 13-14 'पउमचरिउ' में इस प्रकार के माया-सीता का कहीं भी उल्लेख नहीं मिलता है। मारीच-प्रसंग 'मानस' में मारीच का प्रसंग एक राक्षस के रूप में हुआ है जिससे रावण सीताहरण में सहायता लेने हेतु भेंट करता है। माया-मृग का रूप धारण करके तथा सिंहनाद करके वह अपना कार्य पूर्ण करता है परन्तु यहाँ यह उल्लेखनीय है कि 'मानस' में मारीच राम के अलौकिक रूप से पूर्ण परिचित है. वह रावण को समझाता भी है परन्त रावण के हठ को देखकर भय तथा विवश होकर वह माया-मृग बनता है, उसने विचार किया कि मना करने पर रावण उसका वध कर देगा। रावण के हाथों मरने से अच्छा है कि राम के हाथों से ही मृत्यु को प्राप्त करूँ! अन्ततः वह श्रद्धासहित राम का स्मरण करके मृत्युगति को प्राप्त होता है। वह अन्त समय राम के समक्ष अपना राक्षसी रूप प्रकट करता है तथा उनका स्मरण करता है। राम उसके हार्दिक प्रेम को पहचानकर उसे वह परमपद प्रदान करते हैं जो मुनियों को भी दुर्लभ हैं। ‘पउमचरिउ' में यही वर्णन किंचित् परिवर्तित रूप में प्राप्त होता है। इसमें मारीच शब्द का उल्लेख नहीं हुआ है वरन् सीता को देखने के उपरान्त रावण उन्मादित होकर अवलोकिनी विद्या का ध्यान करता है। अवलोकिनी विद्या को प्रकट होने पर रावण उससे सीताहरण में सहायता माँगता है, इस पर अवलोकिनी विद्या उसे भविष्य हेतु सचेत करती है और इस कार्य हेतु मना करती है कि सीताहरण प्रत्येक दृष्टि से हानिकारक है परन्तु रावण इतना उन्मादित है कि उसे सीता की तुलना में स्वयं का, लंका का विनाश स्वीकार है। रावण के शब्द द्रष्टव्य हैं- यही एक मनुष्यनी स्त्री है जो यदि एक मुहूर्त के लिए जिला देती है तो उस शिव (मोक्ष) के शाश्वत सुख की तुलना में मेरे लिए यही बहुत है। रावण के विषयासक्त चित्त को पहचानकर अवलोकिनी विद्या रावण को संकेत करती है कि सिंहनाद का संकेत सुनकर राम लक्ष्मण की सहायतार्थ, जो खर-दूषण के साथ युद्धरत हैं, चले जायेंगे, उस समय सीताहरण किया जा सकता है। इस प्रकार पउमचरिउ में सीताहरण में अवलोकिनी विद्या सहायता करती है उसी प्रकार मानस में मारीच। दोनों का कार्य एक है किन्त नाम तथा रूप में अन्तर है। रावण द्वारा सीताहरण के उपरान्त सीता को वन में रखना पउमचरिउ के अनुसार रावण सीता को नन्दनवन में रखता है। मानस में रावण सीता को अशोक वन में रखता है। शबरी-प्रसंग तथा नवधा-भक्ति उपदेश मानस में राम जब सीता की खोज हेतु जाते हैं तो मार्ग में शबरी का आश्रम पड़ता है। राम शबरी का उद्धार करते हैं तथा उसे नवधा-भक्ति का उपदेश देते हैं। नवधा-भक्ति संक्षेप में इस प्रकार है -
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy