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________________ अपभ्रंश भारती 13-14 अक्टूबर 2001-2002 'राउलवेल' में वर्णित नारी के वस्त्राभूषण तथा श्रृंगार प्रसाधन - डॉ. हर्षनन्दिनी भाटिया उत्तरकालीन अपभ्रंश की शिलांकित कृति ‘राउलवेल' भाषा काव्य है। इस कृति का रचयिता 'रोडा' नामक कवि है। यह शिलालेख मुम्बई के 'प्रिन्स ऑफ़ वेल्स' म्यूज़ियम में इस समय सुरक्षित है। प्राप्त सूचनाओं के अनुसार यह मालवा के धार नामक स्थान से प्राप्त हुआ था। वर्तमान में यह भग्नावस्था में है और कुछ अंश खण्डित हो चुके हैं। प्रस्तुत रूप में भी कुछ अंश अपाठ्य हैं। डॉ. हरिवल्लभ भायाणी' एवं डॉ. माताप्रसाद गुप्त दोनों ही विद्वानों के अनुसार इसका लिपिकाल ईसा की 11वीं सदी होना चाहिए। ‘राउलवेल' राजकुल विलास का अपभ्रंश रूप है। इस काव्य में किसी सामन्त के राउल (राजकुल)- राजभवन की रमणियों का वर्णन है, इसलिए इसका नाम राजकुल विलास (राउलवेल) रखा गया है। यह उत्तर अपभ्रंशकालीन ग्रन्थ होने के कारण अधिक महत्त्वपूर्ण है। सम्पूर्ण शिलालेख एक ललित काव्य है जिसमें छह प्रदेशों की नायिकाओं का नख-शिख वर्णन किया गया है। यद्यपि यह . एक लघु काव्य है फिर भी इसमें अनूप रूप और अद्भुत सौन्दर्य का वर्णन किया गया है। डॉ. गुप्त इसका लेख-स्थान ‘त्रिकलिंग' मानते हैं। उनका अनुमान है कि इस काव्य में प्रयुक्त 'टेल्लि' और 'टेल्लिपुतु' शब्दों से ऐसा ही संकेत मिलता है। चूँकि इसमें 'गौड़' शब्द का प्रयोग किया गया है इस कारण डॉ. गुप्त का मत है कि यह कलचूरि वंश के अधीन किसी राजा के 'गौड़' सामन्त से सम्बद्ध हो सकता है क्योंकि त्रिकलिंग उस समय कलचुरियों के अधिपत्य में था और कलचुरि तथा गौड़ एक नहीं है।
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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