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________________ . अपभ्रंश भारती 13-14 डॉ. गुप्त के अनुसार इस काव्य में उक्त गौड़ सामन्त की कुछ नायिकाओं का वर्णन है। पहली नायिका पूर्णतः स्पष्ट नहीं होती, दूसरी ‘हणि' है, तीसरी ‘राउल' नाम की क्षत्रिय कन्या है, चौथी 'टिक्कणी', पाँचवीं 'गौड़ी' और छठी कोई ‘मालवीया' है। प्रथम पाँच का नख-शिख वर्णन पद्य में है तथा अन्तिम का वर्णन गद्य में किया गया है। वस्त्र प्रथमतः हम इन नायिकाओं के वस्त्रों के विषय में विचार करें तो ज्ञात होता है कि कुछ साधारण कपड़ों का प्रयोग होता था। सिले हुए कपड़ों का नाममात्र रूप में है- जैसे ओढ़ने का वस्त्र। उस वस्त्र के ओढ़ने का वर्णन और ओढ़ लेने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे मुख पर चन्द्रमा की चाँदनी बिखर पड़ी है। यह वर्णन अति महत्त्वपूर्ण है। प्राचीन समय में इस प्रकार के वर्णन यदा-कदा ही दृष्टिगोचर होते हैं और कम प्रयोग में आते हैं - धवलर कापड़ ओढ़ियल कइसे। भुह ससि जोन्ह पसारेल्ह जैसे॥ 'पारडी' नामक एक प्रकार का बहुत महीन मलमल का कपड़ा है जिसे पहनकर नायिका चाँद के समान झिलमिलाती है - पारडी आंतरे, धणहरु कइसउ। सरउ-जलय-विच चाँद जइसउ॥ _ 'सेंदूरी' एक धारीदार कपड़े का नाम है तथा दक्षिण भारत का एक महीन मलमल है जिसकी दो ओढ़नियाँ बनाई गई हैं। सेंन्दूरी, सोलदही व विउढणु तीनों का वर्णन एक पंक्ति में कर दिया गया है - विउढणु सेंदूरी सोलदही कीजइ। रूउ देखि तारउ सब जणु खीजइ॥ नायिका के घाघरे का उल्लेख किया गया है जो बहुत घेरवाला है, जो आज भी प्रचलित है - पहिरण घाघरेहिं जो केरा। कछडा-वछडा डहि पर इतरा। नायिका के पहनने का प्रमुख वस्त्र ‘कंचुकी' है जिसका वर्णन अनेक स्थलों पर अनेक नाम से हुआ है। मूल शब्द काँचू ही है किन्तु अनेक रूपों में प्रयुक्त किया गया है - कंचुआ-रातऊ कंचुआ अति सुठु चॉगउ । गाढउ वाध (?) ................... ऑगउ॥
SR No.521859
Book TitleApbhramsa Bharti 2001 13 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2001
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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