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अपभ्रंश भारती
- 11-12
अक्टूबर 1999,
अक्टूबर - 2000
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कवि अद्दहमाण कृत 'संदेश - रासक'
श्री वेदप्रकाश गर्ग
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कवि अद्दहमाण' द्वारा रचित 'संदेश रासक' तीन प्रक्रमों में विभक्त 223 छंदों का प्रबन्धात्मक रूप में एक सुन्दर जैनेतर खण्ड-काव्य है। छंद-योजना की दृष्टि से उक्त छंद .22 प्रकार के हैं । इस काव्य की विशेषता यह है कि इसके छंद एक ओर तो मुक्तक के गुणों से युक्त हैं और दूसरी ओर वे कथा - सूत्र में भी ग्रथित हैं। रासक या रासो शैली की यह रचना एक दूत काव्य है । इसमें 'संदेश' शब्द से विषय का बोध होता है और 'रासक' काव्य-रूप का परिचायक है । 'रासक" एक छंद का भी नाम है और यह इस रचना का मुख्य छंद है । इस कृति का लगभग एक तिहाई भाग रासक छंद में ही लिखा गया है। वैसे इसमें छंद-वैविध्य है और अडिल्ल, दोहा, रड्डा, पद्धड़िया आदि विभिन्न छंदों का प्रयोग हुआ है। संभवतः इसकी रचना पठन-पाठन हेतु हुई थी, किन्तु इसकी गेयता से भी इंकार नहीं किया जा सकता। आचार्य हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने इसे मसृणोद्धत ढंग का ज्ञेय रूपक माना है'। रासक में गेय तत्व की प्रधानता हो जाने पर कथा तत्व का आ जाना स्वाभाविक ही था । अतः गीतात्मक कलेवर में यह एक सुंदर रचना है। इसमें एक कल्पित कथा का आधार लिया गया है। विषय की दृष्टि से 'संदेश-काव्य' में प्रवास-जनित विरह का वर्णन है, किन्तु कथा सुखान्त है और आदि - अंत में आशिष - कथन है। इसमें स्वकीया के प्रेम का विकास किया गया है। विजय नगर की एक सुन्दरी अपने प्रवासी पति के विरह में व्याकुल होकर एक पथिक से संदेश भेजती है। 'संदेशरासक' की कथा संक्षेप में इस प्रकार है