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अपभ्रंश भारती - 11-12
'पउमचरिउ ' के चतुर्थ काण्ड - युद्धकाण्ड में हंसद्वीप में राम की सेना को देखकर निशाचर सेना में खलबली, विभीषण द्वारा रावण को समझाना तथा रावण द्वारा विभीषण को अपमानित करना, विभीषण द्वारा राम से संधि, राम के दूत के रूप में अंगद का रावण के दरबार में जाना, राम तथा रावण पक्ष में युद्ध प्रारंभ, रावण द्वारा प्रयुक्त शक्ति से लक्ष्मण का आहत होना, राम का विलाप, विशल्या द्वारा लक्ष्मण का चेतन होना तथा लक्ष्मण-विशल्या-विवाह, लक्ष्मण के चेतन होने के समाचार को सुनकर रावण का क्रुद्ध होना, रावण द्वारा बहुरूपिणी विद्या की आराधना, हनुमान तथा सुग्रीव द्वारा रावण की पूजा-आराधना में विघ्न, रावण का विघ्न के उपरांत भी अडिग रहना, अंगद का लंका में प्रवेश, रावण की पूजा-आराधना में अंगद द्वारा विघ्न डालना परंतु रावण का अडिग रहकर बहुरूपिणी विद्या को सिद्ध कर लेना, मंदोदरी द्वारा रावण को समझाना परंतु रावण का युद्ध हेतु तत्पर रहना इत्यादि घटनाएँ वर्णित हैं । 'मानस' के चतुर्थ काण्ड - किष्किंधा काण्ड में राम से हनुमान का मिलना तथा राम एवं सुग्रीव की मित्रता, बालि-सुग्रीव युद्ध, बालि-उद्धार, तारा-विलाप, राम द्वारा तारा को उपदेश, सुग्रीव का राज्याभिषेक, अंगद का युवराजपद, सीता की खोज हेतु बंदरों का प्रस्थान, वानरों का समुद्र तट पर आना, सम्पाती से भेंट, समुद्र लाँघने का परामर्श, जाम्बवंत द्वारा हनुमानजी को बल की याद दिलाकर उत्साहित करना इत्यादि घटनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। _ 'पउमचरिउ' के पाँचवें काण्ड में युद्ध की विभीषिका का वर्णन, लक्ष्मण के चक्र से रावण की मृत्यु होना, मंदोदरी व अंत:पुर की समस्त रानियों, विभीषण तथा निशाचरों का करुण क्रंदन, नारी के प्रति लोकमानस की धारणा, राम तथा लक्ष्मण का सीता से मिलन, शांतिनाथ के जिनालय में जाकर राम द्वारा जिनेंद्र भगवान की स्तुति, विभीषण का राज्याभिषेक, राम-सीता तथा लक्ष्मण का पुष्पक विमान द्वारा अयोध्या आगमन, राम के अयोध्या-आगमन पर भरत, प्रजाजन तथा माताओं द्वारा स्वागत-सत्कार, राम का राज्याभिषेक, राम की सीता के प्रति विरक्ति, लोकापवाद, राम का सीता-निर्वासन का प्रस्ताव, लक्ष्मण का विरोध, सीता को वन में निर्वासित करना, सीता का वन में आत्मचिंतन, राजा वज्रजंघ द्वारा सीता को आश्रय देना, लवण-अंकुश का जन्म, राजा पृथु की कन्याओं से लवण-अंकुश का विवाह, नारद द्वारा लवण-अंकुश को राम तथा लक्ष्मण के बारे में बताना, कुद्ध होकर उनके द्वारा राम तथा लक्ष्मण पर चढ़ाई, राम-लक्ष्मण तथा लवणअंकुश में युद्ध, नारद द्वारा राम-लक्ष्मण को सूचित करना कि लवण-अंकुश राम के पुत्र हैं, इसके पश्चात् युद्ध की समाप्ति, लवण-अंकुश का अयोध्या में प्रवेश, सीता हेतु राम का वन जान सीता का राम के साथ आना तथा स्वयं अग्नि-परीक्षा का प्रस्ताव रखना, अग्नि का सरोवर के रूप में परिवर्तित हो जाना, कमल पर आसीन सीता का सरोवर के मध्य से प्रकट होना, सीता द्वारा तत्पश्चात् दीक्षा ग्रहण कर लेना, सीता को इंद्रत्व की उपलब्धि, राजा श्रेणिक के पूछने पर गौतम गणधर द्वारा राम, लक्ष्मण, सीता, लवण, अंकुश के पूर्वभवों का वर्णन, हनुमान द्वारा दीक्षा ग्रहण करना, इंद्र द्वारा राम की विरक्ति हेतु योजना बनाना तथा इसी योजनान्तर्गत लक्ष्मण की मृत्यु, राम का भ्रातृ-प्रेम तथा मोह, देवों द्वारा राम को समझाना, राम को आत्मबोध होना, राम