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________________ अपभ्रंश भारती - 11-12 अक्टूबर - 1999, अक्टूबर - 2000 19 पउमचरिउ तथा रामचरितमानस के वस्तुविधान का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. मंजु शुक्ल शब्दकोष में प्रायः वस्तु' का अर्थ इस प्रकार प्राप्त होता है - वास्तविक या कल्पित सत्ता, वे साधन या सामग्री जिससे कोई चीज बनी हो, इतिवृत्त इत्यादि । प्रमुखत: वास्तविक या कल्पित सत्ता अर्थ ही व्यवहार में आता है। यह बात हमेशा ध्यान में रखे जाने योग्य है कि वस्तुजगत् सैद्धांतिक रूप में मनुष्य-निरपेक्ष होता है किन्तु व्यवहार और निरे सैद्धांतिक रूप में अंतर करना आवश्यक है। वह वस्तुजगत् जो मानव-निरपेक्ष होता है मानव-चिंतन हेतु अग्राह्य होगा। वस्तुजगत् विराट है और मानव सीमित है । अस्तित्व संघर्ष के दौरान इन्द्रिय विकास के अनुपात में ही यह विराट् वस्तुजगत को अपने अनुसार यथार्थ अथवा वास्तविक बनाता है। उस वस्तुजगत् की चर्चा निरर्थक होगी जो अब तक किसी भी रूप में मानवीय बोध के दायरे में समेटा नहीं जा सकता। वस्तु के संबंध में विचार करते समय यह स्पष्ट होना चाहिए कि उसे अंग्रेजी के Thing अर्थ में लिया जा रहा है या Matter के अर्थ में। वस्तुरूप अथवा वस्तुविधान जैसे पदों का यदि प्रयोग करें तो प्रयोगकर्ता को यह स्पष्ट होना चाहिए कि वह 'वस्तु' से क्या अर्थ संप्रेषित करना चाहता है।
SR No.521858
Book TitleApbhramsa Bharti 1999 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1999
Total Pages114
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size9 MB
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