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अपभ्रंश भारती
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उपलब्ध है जिसमें भगवान् पार्श्वनाथ के पूर्व और वर्तमान भव की कथा प्रभावपूर्ण शैली में प्रस्तुत की गई है। 23
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तेरहवीं शती के अपभ्रंश के सिद्ध कवि अमरकीर्ति गणि का नाम महत्त्वपूर्ण है। आपके द्वारा प्रणीत 'मिणाहचरिउ' अर्थात् नेमिनाथचरित, 'महावीरचरिउ' अर्थात् महावीरचरित तथा 'जसहरचरिउ' अर्थात् यशोधरचरित साहित्यिक काव्य कृतियाँ हैं। इसी शती के कविवर दामोदर द्वारा प्रणीत 'मिणाहचरिउ ' उल्लेखनीय रचना है। इस चरिउ - काव्य में 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ की कथा अभिव्यक्त है। यह एक अर्थ प्रधान खण्डकाव्य है । 24
चौदहवीं शती के लक्ष्मणदेव कृत 'णेमिणाहचरिउ' चार संधियों/परिच्छेदों में 83 कडवक शैली में निबद्ध काव्य कृति है । इस चरिउ - काव्य में श्रावक और श्रमण आचार-विचार का सुन्दर प्रतिपादन हुआ है 25 इस शती के सशक्त कवि रइधू अपभ्रंश के महाकवि हैं। आपने छोटीबड़ी सैंतीस काव्य कृतियों की सर्जना की है जिनमें 'मेहेसरचरिउ', 'णेमिणाहचरिउ', ‘पासणाहचरिउ’, ‘सम्मइजिणचरिउ', तिसट्ठि महापुरिसचरिउ, बलहद्दचरिउ, जसहरचरिउ, सुक्कोसलचरिउ, सुंदसणचरिउ उल्लेखनीय चरिउ - काव्य हैं।26 इन सभी चरिउ - काव्यों में पूर्व चर्चित कथावृत्त हैं जो कवि ने अपनी काव्य-प्रतिभा से अनूठी अभिव्यञ्जना की है।
कविवर धनपाल द्वितीय विरचित 'कामचरिउ' एक अभिनव चरिउ - काव्य है । इस में प्रथम कामदेव बाहुबली की कथा 18 संधियों में निबद्ध है । इसीलिये इस रचना को 'बाहुबलीचरिउ' भी कहा जाता है । यह काव्य साहित्य शास्त्र तथा काव्य सौन्दर्य से समलंकृत है। इसी धारा के अन्यतम कवि हरिचन्द द्वारा रचित 'बड्ढमाणचरिउ' काव्य का उल्लेख मिलता है। इसी काव्य का अपर नाम 'सेणियचरिउ' भी मिलता है। इस काव्य में भगवान वर्द्धमान और श्रेणिक की जीवन-गाथा अंकित है। श्रेणिक तीर्थंकर महावीर के प्रथम श्रोता थे। कविवर हरिदेव की एकमात्र चर्चित रचना 'मयणपराजयचरिउ' दो परिच्छेदों में विभक्त है जिसमें क्रमश: 37 और 81 अर्थात् कुल 118 कड़वक हैं। यह रचना वस्तुत: एक रूपक खण्डकाव्य है जिसमें कवि ने सैद्धान्तिक विषयों की चर्चा की है। 27
सोलहवीं शती के अपभ्रंश भाषा के सशक्त कवि हैं - तेजपाल ! आपने संभवणाह और वरंग नामक चरिउ - काव्यों का भी प्रणयन किया। इसमें सम्भवनाथ का जीवन-चरित्र पौराणिक पद्धति पर अभिव्यक्त है । दूसरे चरिउ - काव्य में वरांग का जीवन व्यञ्जित है । कविवर महीन्दु इस काल के सशक्त चरिउ - काव्य के प्रणेता हैं। 'संतिणाहचरिउ' काव्य में तीर्थंकर शान्तिनाथ का जीवनवृत्त व्यञ्जित । कवि माणिक्यराज विरचित णायकुमारचरिउ में मुनिवर अमरसेन का जीवनवृत्त सप्त संधियों में व्यञ्जित है । 28
इस प्रकार अपभ्रंश वाङ्मय की विकासोन्मुख काव्य-धारा आठवीं शती से आरम्भ होकर 16वीं शती तक निर्बाधरूप से प्रवाहित होती रही है । चरिउ - काव्य रूप का प्रयोग प्रत्येक शती में किया गया है । इतने लोकप्रिय काव्यरूप में अपभ्रंश के कवियों ने मध्यकालीन लोक संस्कृति