________________
14
अपभ्रंश भारती - 11-12
उपर्यंकित वाङ्मय में चरिउ-काव्य का काव्यशास्त्रीय वैशिष्ट्य और लोकप्रियता की दृष्टि से उल्लेखनीय अवदान है। अपभ्रंश में आठवीं शताब्दी से यह काव्य रूप कवियों के कण्ठ का हार बना रहा। यहाँ इस 'काव्य रूप' की परम्परा विषयक संक्षिप्त चर्चा करना असंगत न होगा। ___ अपभ्रंश चरिउ-काव्यों की एक सुदीर्घ परम्परा रही है । अपभ्रंश के चतुर्भुज आठवीं शती के कवि माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित दो काव्य-कृतियों का उल्लेख मिलता है। एक कति का नाम है - 'पंचमी चरिउ'। यह कृति अनुपलब्ध है। अपभ्रंश के सशक्त और रससिद्ध कवियों में महाकवि स्वयंभू का स्थान महत्त्वपूर्ण है। स्वयंभूकृत 'पउमचरिउ' उपलब्ध चरिउ-काव्यों की परम्परा में पहल करता है। यह वस्तुतः महाकाव्य शैली में प्रणीत एक बृहद् काव्य कृति है जो 90 संधियों में विभक्त बारह हजार छन्दों में पूर्ण हुआ है। इस महाकाव्यात्मक चरिउ काव्य में पद्म अर्थात् राम का जीवनवृत्त शब्दायित है । यह वस्तुत: जैन रामायण है । कवि ने इसके अतिरिक्त रिट्ठनेमिचरिउ को भी रचा है जिसमें जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ, श्रीकृष्ण
और यादवों की कथा व्यक्त है। कवि का पंचमीचरिउ काव्य पद्दड़िया छन्द में प्रणीत है जिसमें नागकुमार की कथा अभिव्यक्त है।
पुष्पदन्त दशवीं शती के प्रतिभासम्पन्न महाकवि थे। आपके द्वारा प्रणीत 'णायकुमारचरिउ', तथा 'जसहरचरिउ' काव्य उल्लेखनीय हैं। णायकुमारचरिउ काव्य में नागकुमार का जीवन अभिव्यक्त है। यह काव्य १ संधियों में विभक्त है। कवि का जसहरचरिउ एक उत्कृष्ट खण्ड काव्य है जिसमें यशोधर का चरित्र चार संधियों में चर्चित है।”
ग्यारहवीं शती के सशक्त कविवर वीर द्वारा प्रणीत 'जंबुसामिचरिउ' में जम्बू स्वामी का वृत्तान्त ग्यारह संधियों में शब्दायित है। इस काव्य में काव्य शास्त्रीय लक्षणों का समावेश हुआ है।18 बारहवीं शताब्दी के यशस्वी कवि श्रीधर प्रथम द्वारा प्रणीत दो चरिउ काव्य ग्रंथ - 'पासणाह' तथा 'बड्ढमाण चरिउ' उपलब्ध हैं। इन काव्यों में पौराणिक कथा के सभी तत्त्व विद्यमान हैं। श्रीधर द्वितीय द्वारा रचित भविसयत्त चरिउ छह परिच्छेदों में 1530 छन्दों में गुम्फित सशक्त रचना है । यह काव्य कृति कड़वक शैली में पद्धड़िया छन्द-बद्ध है। इसी श्रेणी में श्रीधर तृतीय द्वारा रचित सुकुमाल चरिउ के 224 कड़वकों में सुकुमाल के पूर्वभवों के साथ वर्तमान जीवन का सुन्दर चित्रण किया गया है।
बारहवीं शती के कविवर देवसेन द्वारा प्रणीत 'सुलोयणाचरिउ' एक वृहद् 28 संधियों में गुम्फित काव्य है। इस चरिउकाव्य में भरत चक्रवर्ती के प्रधान सेनापति जयकुमार की पत्नी सलोचना का जीवनवत्त विविध छन्दों में वर्णित है। माधर्य, प्रसाद और ओज गणों से सम्पन्न यह काव्य अपभ्रंश का महाकाव्य-सरीखा है। मुनिवर कनकामर प्रणीत करकंडचरिउ अपभ्रंश के साहित्य शास्त्र से अनुमोदित एक सरस चरिउकाव्य है, जिसमें महाराजा करकण्डु की कथा दश संधियों में व्यञ्जित है। कवि ने विभिन्न प्रकार के छन्द और अलंकारों की योजना द्वारा इस काव्य को सरस और प्रभावक बनाया है। कविवर देवचन्द्र की एकमात्र रचना 'पासणाहचरिउ'