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________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 अंत' विकृत पाठरूप है, सार्थक नहीं। अत: इस पाठभेद के आधार पर कवि को मुस्लिम धर्मानुयायी सिद्ध करना उचित नहीं है। अत: इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। 'संदेश-रासक' को एक मुसलमान कवि की रचना न मानने से मेरा यह तात्पर्य नहीं है कि किसी मुसलमान कवि द्वारा भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में मंडित काव्य-रचना करने की प्रतिभा पर मैं शंका कर रहा हूँ। हिन्दी में अनेक मुसलमान कवियों ने भारतीय सांस्कृतिक परिवेश के आधार पर अनेक उच्चकोटि के काव्यग्रंथ रचकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, किन्तु इसी के साथ यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त कवियों ने अपनी रचनाओं में ऐसे स्पष्ट संकेत दिए हैं जिनसे यह पूर्णतया ज्ञात हो सका कि अमुक रचना का रचियता इस्लाम-धर्मावलम्बी था। संदेश-रासक में ऐसे परिचय संकेतों का अभाव है। अद्दहमाण ने जो अत्यन्त संक्षिप्त परिचय दिया है उससे यह सिद्ध नहीं होता कि वह मुसलमान था। पुष्ट प्रमाणाभाव ही इसमें कारक है। यदि भविष्य में ऐसे प्रमाण मिले और उनसे अद्दहमाण के मुसलमान होने की पुष्टि हो, तो फिर यह स्थिति शंकनीय नहीं है। ___ जहाँ तक डॉ. जैदी की स्थापना का प्रश्न है, उसके संबंध में मुझे इतना ही कहना है कि उसकी कोई सार्थकता सिद्ध नहीं होती है, क्योंकि उन्होंने 'अद्दहमाण' का अपने पिता के साथ विदेश (मिशहद) से सन् 1193 में भारत आना और सन् 1213 के लगभग संदेश-रासक का रचा जाना माना है, जो उचित प्रतीत नहीं होता। कारण कि किसी विदेशी का, चाहे वह कितना ही प्रतिभाशाली क्यों न हो, इतने कम समय में तत्कालीन अपभ्रंश भाषा पर असाधारण अधिकार पा लेना, भारतीय संस्कारों की बहुश: जानकारी का होना और फिर सफल काव्य-रचना में पारंगत होना, संगत नहीं है। अत: डॉ. जैदी के उक्त समाधानात्मक विचारों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अस्तु। ___ जैसा लिखा ही जा चुका है कि टीकाकारों के आधार पर 'अद्दहमाण' का शब्द-रूप 'अब्दुल रहमान' माना गया है, किन्तु विशेष कारणों से, जिनका उल्लेख किया जा चुका है, यह शब्दरूप स्वीकार नहीं किया जा सकता। मेरे विचारानुसार 'अद्दहमाण' का शब्द-रूप आर्द्रमान' जैसा होना चाहिए। 'आर्द्रकुमार', 'आर्द्र देव' जैसे नाम मिलते भी हैं । अतः 'आर्द्रमान' नाम होने में कोई बाधा नहीं है। फिर भी अपभ्रंश भाषा की प्रकृति के अनुसार 'अद्दहमाण' के वास्तविक शब्द-रूप पर विचार करना उचित रहेगा। विद्वानों से निवेदन है कि इस समस्या पर अवश्य ध्यान देने का कष्ट करें। कवि के परिचयात्मक छंद में लिखा है' - पच्चाएसि पहूओ पुव्व पसिद्धो य मिच्छ देसोत्थि। तह विसए संभूओ आरद्दो मीर सेणस्स ॥ 3 ॥ तह तणओ कुल कमलो पाइय कव्वेसु गीय विसयेसु। अद्दहमाण पसिद्धो संनेह रासयं रहयं ॥4॥
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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