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________________ 60 अपभ्रंश भारती -9-10 यात्रा का वर्णन रहता है। एक विशाल वट-वृक्ष के नीचे विश्राम करते हुए करकंड उसके पत्तों को वाणों से छेद देता है। गुप्तचर राजा को सूचित करते हैं। राजा स्वयं उन्हें लिवाने आता है और नगर में भव्य स्वागत होता है । महल में आने पर रतिवेगा उसके रूप पर मुग्ध हो गई। राजा उसका विवाह करके अतुल संपत्ति देकर विदा करता है । जल-यात्रा करते समय एक विशालकाय मत्स्य से करकंड का युद्ध होता है । वह उसको मार भी देता है और तैरता-उछलता जल के ऊपर आता है। तभी एक खेचरी राजा को ले उड़ती है। सभी के मध्य उथल-पुथल मच गई, यान परस्पर टकरा गये, रतिवेगा विलाप करती हुई मूञ्छित हो गई और होश में आने पर पद्मावती देवी का आह्वान किया, पूजा-अर्चना की। देवी प्रकट होती है और वरदान माँगने को कहती है। रतिवेगा अपने पति का कुशल समाचार जानने को उत्सुक है, वह समुद्र में डूब गया है। वह तुझे निर्दोष रूप में अवश्य मिलेगा। तू जिनवर का स्मरण कर। मुसीबत के दिनों में परा-शक्ति भी हमारी मदद करती है, उसी का स्मरण करना सार्थक है। यह भारतीय आख्यानों की चिरपुरातन कथा-रूढ़ि है। अन्य लौकिक-प्रेमाख्यानों में शिव-पार्वती की कृपा और उनके साक्षात्कार से अथवा शिव-मठ में उनकी पूजा-अर्चना से प्रेमिका को प्रेमी की प्राप्ति होती है। परन्तु, यहाँ जैन-धर्म की प्रधानता से भगवान् जिन की पूजा और स्मरण पर बल दिया गया है। पर, लोक में प्रेम की सफलता में परा-शक्ति की कृपा का ही जादू होता है। कन्याएँ विवाह के पूर्व वांछित वर-प्राप्ति के लिए और विवाहोपरान्त पति की कुशलता के लिए शिव-पार्वती की पूजा किया करती हैं। इस धार्मिक कथा-रूढ़ि का प्रयोग इसी प्रयोजन से प्रायः किया जाता रहा है। लोक में यह आज भी प्रचलित है। __यहाँ सातवीं संधि के अंत में देवी के धर्मोपदेश के साथ कथा समाप्त हुई-सी लगती है। पर, ऐसा नहीं होता। और देवी आठवीं संधि में वियोगियों के पुनर्मिलन-हेतु दृष्टांत देती है। एक राजा के मंत्री की घोड़ी नगर के बाहर चरने जाती है और गर्भिणी होती है एक चतुर सुआ इसे देखता है। तभी एक ग्वाला वहाँ आता है और सुआ कहता है-वह उसे नगर में ले जाकर राजा के हाथों में बेच दे (8.3.10) वह रास्ते में एक कुट्टिनी और सेठ के विवाद में अपने पांडित्य का परिचय देता है और सेठ को मुक्त कराता है (8.5.10) । फिर, राजा के पास आकर प्रथम उसे आशीर्वाद देता है। राजा के पूछने पर एक कहानी गढ़ता है और पूर्व में पर्वत पर गर्भिणी हुई घोड़ी के उत्पन्न हुए बछेड़े की बात कहता है। उसके कहने पर राजा स्वयं जाकर उसे बछेड़े को लाता है। पंडित सए की वाणी में विश्वास होने से राजा सए की हर बात का अनुसरण करता है। दोनों उस पर सवार होते हैं । राजा को चाबुक लगाने की मना करने पर भी वह लगाता है। बछेड़ा बहुत तेज दौड़ता है और आकाश में चला जाता है । राजा को प्यास लगती है और समुद्रतट पर आ जाता है । वहाँ सैकड़ों कन्याओं को देखकर राजा मोहित होता है, परन्तु सुआ रत्नलेखा से विवाह की कहता है (8.10.5)। राजा प्रचुर धन लेकर सुआ,घोड़े और रानी के साथ सलिलयान द्वारा प्रयाण करता है । रात्रि होने पर सभी ने पहरा देकर दिन के प्रकाश की प्रतीक्षा की। परन्तु, राजा के पहरे में चोर घोड़ा और सलिलयान को लेकर चले गये। सुए ने तुरन्त लकड़ी काटकर नाव बनाने को कहा ताकि
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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