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अपभ्रंश भारती - 9-10
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रत्नाकर को तर सकें (8.12.6)। परन्तु समुद्री लहरों से नौका टूट गई और राजा-रानी बिछुड़ गये। सुआ उड़कर एक पेड़ पर चला गया। फिर, पंडित सुए के प्रयास से राजा-रानी और घोड़ा सभी मिल गये। एक विद्याधर कन्या करकंड को लिवा लाई और रतिवेगा को अपना पति मिल गया। इस अवांतर कहानी से देवी के बचनों में आस्था उत्पन्न होती है। यह. मोड़ वस्तुत: जैनधर्म में आस्था और विश्वास के लिए ही दिया गया है। लेकिन कथा की रोचकता में इससे चार चाँद अवश्य लग गये हैं। यह मुनि कनकामर की कथा-योजना और शिल्प का ही भव्य चमत्कार है।
पण्डित-प्रवर सुए की कथानक-रूढ़ि का प्रयोग यों तो प्रेमाख्यानों में अनेक रूपों में मिलता है। लेकिन, यहाँ कथा को गति देनेवाले प्रेम-संबंध-घटक के रूप में और कथा के रहस्यों को खोलनेवाले भेदिया के रूप में ही हुआ है। अगर घोड़ी को गर्भिणी होते हुए सुआ न देखता तो कथा वहीं समाप्त हो जाती; परन्तु उस प्रसंग से कथा अग्रसर हुई और उसमें रोचकता का भी समावेश हुआ तथा इस मध्य जैन-धर्म के प्रचारार्थ भी देवी का साक्षात्कार और जिनवर के स्मरण . में आस्था भी प्रकट हो जाती है। यह शुक भी मनुष्यों की बोली बोलता है और पंडित-विद्वान्
की तरह राजा को आशीष भी देता है। पथ-प्रदर्शक के रूप में ढाँढस भी दिलाता है और मुसीबत के क्षणों में सूझ-बूझ से भी काम लेता है। भारतीय-साहित्य में ऐसे अनेक तोता-मैना, हंसकपोत, मोर आदि पक्षियों का प्रयोग प्रेम-संबंध-घटक और संदेश-प्रेषण के लिए दूत के रूप में किया गया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है भारतीय-संस्कृति में मानव और मानवेतर सभी जीवों का परस्पर सह-भाव रहा है। भाषा तो सबकी अलग-अलग रही है परन्तु भावों की व्यंजना में कोई भेदभाव नहीं रहा है। प्रकति सदैव से हमारी सहचरी रही है, विशेषतः तब जब हमारा मन भारी हो जाता है। इन्हीं चहचहाते जीवों के साथ हम हँसते-खेलते और अपने दुःख-दर्द को भूलते रहे हैं। जैन-मुनि तो इसी प्रकृति के मध्य रहते आये हैं अत: इसके मर्म से भलीभाँति परिचित रहे हैं, इन्हीं के मध्य उन्होंने जीवन के उत्सव को खूब हँस-खेलकर गुजारा है। इससे उन्हें सद्-प्ररेणा ही मिली है। इसका दोहन उन्होंने कभी नहीं किया। तभी तो उनकी इन कहानियों में एक जीवन्त शक्ति है, अभय-प्ररेणा है और दिव्य उपदेश है। __ इसके पश्चात् करकण्ड द्रविड़ राजाओं पर विजय प्राप्त करता है और उनके मुकुटों को पैरों से रोंदता है; तभी उसे जिन-प्रतिमा के दर्शन होते हैं । इस घटना से वह बड़ा व्यथित होकर प्रायश्चित करता है । पुनः वह उस वन में पहुँचता है जहाँ मदनावली का हरण हुआ था। वहीं एक खेचर मदनावली को लाकर सौंपता है। खेचर एक विद्याधर था और अपने पूर्व-जन्म की संपूर्ण कहानी कहकर क्षमा याचना करता है। राजा करकंड चम्पा-नगरी में आता है। तभी शीलगुप्त मुनि आते हैं और राजा वैराग्यपूर्वक दीक्षा ले लेता है।
एक बार राजा करकंड तेरापुर आता है और वहाँ के राजा से पर्वत पर सहस्रस्तंभ गुफा तथा बामी का समाचार पाता है। बस कथा बड़ी तीव्र गति से बढ़ने लगती है। यह सुनकर कि एक हाथी नित्य आता है और सरोवर से कमल लेकर उस बामी पर चढ़ाता है, उसे बड़ा आश्चर्य