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अपभ्रंश भारती - 9-10
59 इसी प्रकार दूसरी संधि में जब पद्मावती श्मशान में पुत्र को जन्म देती है, तो एक मातंग तत्क्षण प्रकट होकर उसे अपने हाथ में ले लेता है। पद्मावती बहुत दुःखी होकर विलाप करती है। तब मातंग अपने पूर्व-जन्म की कथा कहता है और मुनि के शाप से त्राण पाने के लिए ऐसे बालक के पालन-पोषण की बात कहता है । ऐसा सुनकर पद्मावती के शोक का निस्तारण हो जाता है और वह मुनि के दर्शन से अर्जिका-व्रत ले लेती है और सहर्ष पुत्र के प्रति अपना प्यार प्रकट करती रहती है। बालक भी पढ़ता-लिखता और बड़ा होता है । इस प्रकार कहानी आगे बढ़ती है। ___ अब करकंड उस खेचर से क्षणभर के लिए भी दूर नहीं होता। उन्हीं दिनों दन्तीपुर के राजा की मृत्यु हो जाती है। किन्तु उसके कोई पुत्र न होने से राज-सिंहासन खाली ही रहता है। मंत्री के मन में स्फुरण होता है कि एक हाथी को पूजकर उसे जलपूर्ण घड़ा अर्पित किया जाय, जो कोई राज करने वाला हो उसके ऊपर इसे ढालेगा। हाथी चारों ओर भ्रमण करता हुआ नगर के बाहर श्मशान में पहुँचा और करकंड के सिर पर उसे डाल दिया। सबको बड़ा दुःख हुआ। किन्तु, तत्क्षण ही खेचर की मुनि-श्राप से लुप्त सभी विद्याएँ लौट आयीं और उसने बतलाया कि यह मातंग का पुत्र नहीं है । दिव्य देह राजकुमार है। विश्वास होने पर उसे राज-गद्दी पर बिठा दिया। इस कथानक-रूढ़ि के प्रयोग से भी कथा को गति मिलती है और जिज्ञासा होती है कि करकंड के राजा होने के बाद क्या हुआ क्योंकि यह एक ऐसा संभाव्य सत्य है जो असंभव दीख पड़ने पर भी लोक-जीवन के विश्वास से कटा नहीं है।
एक दिन राजा नगर-भ्रमण करते हुए ब्राह्मण के हाथ में पचरंगे सलक्षण रूप को देखकर मोहित होता है और वह ब्राह्मण उसका परिचय देता है। उधर मदनावली नंदनवन में सखियों के साथ खेलते समय खेचर के मधुर स्वर से करकंड की कीर्ति का गीत सुनकर मूच्छित हो जाती है । वह सखी को प्रेरित कर राजा के पास भेजती है। राजा आकर उसके साथ विवाह करता है (3.8.10) । उसी समय माता पद्मावती अकस्मात् आ जाती है और करकंड को आशीष देकर चली जाती है । अनेक लोक-कहानियों में बहुत दिनों बाद बिछुड़े हुए स्वजनों का मिलना देखा जाता है और इससे प्रकट होता है कि ऐसे अवसरों पर लोक एकबद्ध हो जाता रहा होगा। तभी चम्पाधिप का दूत आता है और उनके आधिपत्य को स्वीकार करने की कहता है। ऐसा सुनकर करकंड को क्रोध आ जाता है और दोनों में भयंकर युद्ध छिड़ जाता है। तभी युद्ध-भूमि में पद्मावती आ जाती है तथा करकंडु को बतलाती है कि ये तेरे पिता हैं। साथ ही संपूर्ण वृत्तांत कहती है। इस प्रकार युद्ध रुक जाता है और शत्रुता और वैमनस्य का स्थान मैत्री-भाव और वात्सल्य ले लेता है। इस प्रकार कथा एक क्षण विराम पाकर फिर बढ़ जाती है । (3.20.10)।
पट पर सलक्षण चित्र देखकर प्रेमोद्भव होना प्रेमाख्यानों की पुरातन कथा-रूढ़ि रही है। छठी संधि की मदनमंजूषा, रतिविभ्रमा, कनकमती और लीलावती के हृदय में भी इसी प्रकार चित्र देखकर नरवाहन के प्रति प्रेम स्फुरित होता है । इसके पश्चात् करकंड सिंहल द्वीप की यात्रा करता है जो पद्मिनी-नायिकाओं के लिए प्रसिद्ध है। प्रायः सभी प्रेमाख्यानों में सिंहल-द्वीप की