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________________ 38 अपभ्रंश भारती - 9-10 'कविसमय' काव्य शास्त्रीय अंग विशेष है। मूलतः 'कविसमय' एक पारिभाषिक शब्द है। 'कवि' और 'समय' के समवाय से इस शब्द का गठन हुआ है। समय शब्द अनेक अर्थ-अभिप्राय धर्मा है । आगम में समय शब्द आत्मा" महाभारत में सिद्धान्त, अर्थ और आचार अर्थ में", मनुस्मृति में व्यवहार'?, अमर कोश में समय शब्द का प्रयोग शपथ, आचार्य सिद्धान्त तथा समविद् अर्थ में 13, वाचस्पत्यम, कोश में समय शब्द काल, शपथ, आचार तथा सिद्धान्तार्थ 14, हलायुध कोश में जो उचित से चला आ रहा है, अर्थ में प्रयुक्त है ।15 यहाँ 'कवि समय' शब्द का सीधा सम्बन्ध काव्य तथा काव्य-शास्त्र पर आधारित है। इस दृष्टि से इसका आदिम प्रयोग आचार्य वामन के द्वारा किया गया ।" आचार्यश्री ने इसे कविसमय के रूप में गृहीत किया है।” जिसमें लोक अर्थात् देश, काल, स्वभाव, चतुर्वर्ग शास्त्र और विद्या आदि वर्णन अन्तर्भुक्त हैं । " अचार्य राजशेखर कवि समय को उचित मानते हुए कहते हैं कि वेदों का अनेक विधि पारायण करने पर देश-देशान्तर की ज्ञान-सम्पदा पर आधारित वर्णन विशेष देश-काल के प्रभाव से भले ही आज उसमें अर्थ उत्पन्न हुआ हो, वस्तुत: 'कविसमय' के अन्तर्गत आ जाता है । " अग्निपुराण में भी इसी मान्यता के दर्शन होते है 120 - साहित्यदर्पण में' कविसमय' के लिए 'कवि विख्याति' शब्द का प्रयोग किया गया है। इससे तात्पर्य कवि समाज में दीर्घ काल से चली आ रही परम्परा एवं परिपाटी से ही है। यहाँ ख्याति से तात्पर्य है प्रसिद्धि 21 कवि-प्रसिद्धि में 'वृक्ष - दोहद' को सम्मिलित किया गया है। अशोक, बकुल, तिलक तथा कुरबक की दोहद वृत्तियों का उल्लेख अवश्य किया गया है। 22' काव्य - प्रकाश' में इसे प्रतिहेत्व दोष के अन्तर्गत स्वीकार किया गया है । 23 हिन्दी में काव्य- शास्त्र के प्रमुख प्रणेता आचार्य केशवदास 'कविप्रिया' में 'कवि- समय' को' कविमत' नाम देते हैं। इसमें असत्य बात का वर्णन तथा एक ही वस्तु के वर्णन में जो नियमन किया जाता है वस्तुतः वही 'कविमत 'है । 24 महामहोपाध्याय गंगानाथ झा इसे 'पोइटिकल कन्वेशन' कहते हैं। 25 आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी कविसमय को 'कवि प्रसिद्धि' के नाम से अभिहित करते हैं 126 यहाँ इसका अर्थ आचार या सम्प्रदाय से लिया गया है। 27 डॉ. विष्णु स्वरूप आचार्य द्विवेदी की मान्यता से प्रभावित हैं । इन्होंने भी कवियों के समान आचरण को ही 'कविसमय' स्वीकार किया है। 28 बाबू गुलाब राय 'कविसमय' को परम्परागत बिना लिखापढ़ी का समझौता कहते हैं तथा वे काव्य में इनका वर्णन रेखागणित की पूर्व स्वीकृतियों की भाँति मानते हैं। 29 डॉ. कीथ द्वारा कविसमय को 'मोटिफ' का रूप प्रदान किया गया है। इसी धारणा को डॉ. नामवर सिंह भी मान्यता प्रदान करते हैं ।" बाबू श्याम सुन्दर दास 'कवि परम्परा', 'कविप्रसिद्धि' और 'कवि समय' इन तीनों को एक-दूसरे का पर्याय मानते हैं । कवि - परम्परा को वह कवियों की परम्परा, पूरा कवि समूह या समुदाय जिसका प्रयोग कवि-परम्परा बराबर
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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