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अपभ्रंश भारती - 9-10
को उसकी खोयी ख्याति पुनः लौटाई, वह विद्याधरों से प्रतिशोध लेता है। उसने विद्याधर राजा इंद्र को परास्त कर अपने मौसेरे भाई वैश्रवण से पुष्पक विमान लिया था। खरदूषण उसकी बहन चंद्रनखा का अपहरण कर लेता है, रावण खरदूषण से बदला लेना चाहता है परन्तु मंदोदरी उसे मना कर देती है। बाली की शौर्यगाथा सुनकर वह बाली पर आक्रमण कर उसे अपने अधीन करने का प्रयास करता है परन्तु स्वयं परास्त हो जाता है। बाली अन्त में दीक्षा ग्रहण कर लेता है।
रावण की मृत्यु के संदर्भ में नारद मुनि कहते हैं कि दशरथ तथा जनक की संतानों के द्वारा ही रावण की मृत्यु होगी। यह सुनकर विभीषण दशरथ तथा जनक को मारने का षड्यंत्र रचता है। दशरथ तथा जनक को जब इस षड्यंत्र का पता चलता है तो वे दोनों छद्मवेश में व पलायन कर जाते हैं । दशरथ कौतुकमंगल नामक नगर में पहुँचते हैं जहाँ कैकेयी के स्वयंवर की तैयारी हो रही होती है। दशरथ उसमें भाग लेते हैं। कैकेयी उन्हें वरमाला पहना देती है। कैकेयी द्वारा दशरथ को वरमाला पहनाने के कारण अन्य राजा दशरथ पर आक्रमण कर देते हैं। इस युद्ध में कैकेयी दशरथ की सहायता करती है, दशरथ सहायता हेतु प्रसन्न होकर कैकेयी को वरदान देते हैं । दशरथ की चार रानियाँ होती हैं - कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा, सुप्रभा, जिनके क्रमश: राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न नामक पुत्र हैं।
राजा जनक के एक पुत्री सीता तथा पुत्र भामंडल होता है । एक विद्याधर पूर्वजन्म के किसी बैर का प्रतिशोध लेने हेतु भामंडल का अपहरण कर लेता है। राजा जनक के राज्य पर बर्बर म्लेच्छों द्वारा आक्रमण किया जाता है जिससे त्रस्त होकर जनक राजा दशरथ से सहायता माँगते हैं । दशरथ राम-लक्ष्मण को उनकी सहायतार्थ भेजते हैं। राम-लक्ष्मण उनके कष्टों का निवारण कर देते हैं। सीता स्वयंवर में राम वज्रावर्त तथा समुद्रावर्त धनुष चढ़ा कर सीता को प्राप्त करते हैं। राम के अन्य भाइयों का विवाह राजा शशिवर्धन की 18 कन्याओं के साथ हो जाता है।
दशरथ वृद्धावस्था के कारण राम का राज्यभिषेक करना चाहते हैं परन्तु कैकेयी राम को वनवास तथा भरत को राज्य देने का वर माँगती है। भरत उस समय अयोध्या में ही थे। स्वयंभू राम के चरित्र का प्रारम्भ राम वनवास के प्रसंग से मानते हैं क्योंकि राम का चरित्र यहाँ से अपनी संपूर्ण विशिष्टताओं के साथ मुखरित होता है।
राम जब गंभीरा नदी को पार करके एक वाटिका में पहुँचते हैं तो भरत उन्हें वापस अयोध्या चलने हेतु प्रार्थना करते हैं परन्तु राम पुनः उनके सिर पर राजपट्ट बाँध देते हैं । भरत जिनमंदिर में प्रतिज्ञा करते हैं कि राम के वापस आते ही वह राज्य राम को समर्पित कर देंगे। सीता तथा लक्ष्मण सहित राम जब वंशस्थल नामक स्थान पर पहुँचते हैं तो वहाँ खरदूषण तथा चंद्रनखा का पुत्र शम्बूक सूर्यहास खड्ग की प्राप्ति हेतु साधना कर रहा था, लक्ष्मण धोखे से शम्बूक का सिर काट देते हैं। चंद्रनखा पुत्र-वध की सूचना से क्रोधित होकर वध करनेवाले को खोजती है। राम-लक्ष्मण को देखकर उसका विचार परिवर्तित हो जाता है तथा वह उनके समक्ष अनुचित प्रस्ताव रखती है। ऐसा करने पर लक्ष्मण उसे अपमानित करके भगा देते हैं । राम-रावण के संघर्ष