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________________ अपभ्रंश भारती - 9-10 109 भरत, एक ही हुआ है । तुम्हें छोड़कर दस राजा और होंगे, मेरे बिना बाईस तीर्थंकर और होंगे। नौ बलदेव और नौ नारायण, ग्यारह शिव और नौ प्रतिनारायण । और भी उनसठ पुराण पुरुष जिनशासन में होंगे। इसके अतिरिक्त दूसरी संधि में एक पंक्ति में दिगम्बर संप्रदाय की ओर भी इंगित किया गया है- आकाश से देववाणी होती है-अरे कूट, कपटी, निग्रंथ कापुरुष, परमार्थ को नहीं जाननेवालों, तुम जन्म-जरा और मृत्यु तीनों को जलानेवाले महाऋषियों के इस वेष को धारणकर फल मत तोड़ो, पानी मत पियो, अन्यथा दिगम्बरत्व छोड़ दो। अयोध्याकाण्ड में पच्चीसवीं संधि के अंतर्गत राम, सीता तथा लक्ष्मण के द्वारा बीस जिनवरों-ऋषभनाथ, अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनंदन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदंत, शीतलनाथ, श्रेयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनंतनाथ, धर्मनाथ, शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रत की अभ्यर्थना की गई है। इसी काण्ड में बत्तीसवीं संधि के अंतर्गत राम सीता को अवगत कराते हैं- जिनवरों को किन-किन वृक्षों के तले ज्ञान की प्राप्ति हुई। विशाल पीपल के तले ऋषभनाथ को, सत्यवन्त वृक्ष के तले अजितनाथ को, इंद्रवृक्ष के तले संभवनाथ को, सरल वृक्ष के तले अभिनंदन को, प्रियंगु वृक्ष तले सुमतिनाथ, सालवृक्ष के तले पद्मप्रभ, शिरीष वृक्ष तले सुपार्श्व को, नाग वृक्ष के नीचे चंद्रप्रभ, मालती वृक्ष के नीचे पुष्पदंत, कल्पवृक्ष के नीचे शीतलनाथ तथा श्रेयांसनाथ को, पाटली वृक्ष तले वासुपूज्य, जम्बू वृक्ष तले विमलनाथ तथा अश्वत्थ वृक्ष तले अनंतनाथ, दधिवर्ण वृक्ष के नीचे कुन्थुनाथ तथा नंदी वृक्ष के नीचे अरहनाथ, अशोक वृक्ष तले मल्लिनाथ, चम्पक वृक्ष के नीचे मुनिसुव्रत को ज्ञान प्राप्त हुआ था। ___इसी काण्ड की अड़तीसवीं संधि के अंतर्गत अवलोकिनी विद्या द्वारा राम-लक्ष्मण का वर्णन जैनधर्मानुसार त्रिषष्ठिशलाका पुरुष के रूप में किया गया है- वासुदेव ओर बलदेव से बलपूर्वक सीता का अपहरण कौन कर सकता है? ये त्रेसठ महापुरुषों में से हैं जो यहाँ वनान्तर में प्रच्छन्न रूप से रह रहे हैं। जिनवर चौबीस, आधे अर्थात् बारह चक्रवर्ती, नव बलदेव, नौ नारायण तथा नौ प्रतिनाराण। उनमें से ये आठवें बलदेव और वासुदेव हैं।" चालीसवीं संधि में तीर्थंकर मुनिसुव्रत की वंदना की गई है। इसी काण्ड की इकतालीसवीं संधि में जैनधर्म के नियमों की ओर यह वर्णित करते हुए इंगित किया गया है कि - जिनवर के शासन में पांच चीजें अत्यंत विरुद्ध और अविशुद्ध मानी गयी हैं। इनसे जीव नित्यरूप से दुर्गति में जाता है1. छह निकाय के जीवों का वध करना। 2. मिथ्यावाद में जाना। 3. दूसरे का धन ले लेना। 4. परकलत्र का सेवन किया जाना। 5. गृहद्वार को प्रमाण लिया जाना।
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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