________________
102
अपभ्रंश भारती - 9-10 का महत्त्व किसी प्रकार से न्यून नहीं हुआ है। ये आज भी उतने ही प्रासंगिक तथा अर्थपूर्ण हैं जितने आठवीं शती में थे। 'पउमचरिउ' के महत्त्वपूर्ण नीतिवचन संक्षेप में इस प्रकार हैंविद्याधर काण्ड
सायंकाल में सरोवर में कुम्हलाये कमलदल को देखकर जिनाधिप कहते हैं - 1. प्रत्येक जन्म लेनेवाले जीव की यही दशा होगी। पूर्वाह्न में जो जीवित दिखाई पड़ता है वही
अपराह्न में राख का ढेर हो जाता है। जिस नर श्रेष्ठ को लाखों लोग प्रणाम करते हैं वही प्रभु मरने पर श्मशान में ले जाया जाता है। जिस प्रकार संध्या से यह कमलवन, उसी प्रकार जरा से यौवन नष्ट होता है। यम से जीव. अग्नि से शरीर, समय से शक्ति, विनाश से ऋद्धि
नाश को प्राप्त होती है। 2. भागते, प्रणाम करते, सोते, खाते तथा पानी पीते हुये शत्रु को मारना उचित नहीं होता है। 3. इस प्रकार जीना चाहिये जिससे कीर्ति फैले, इस प्रकार हंसना चाहिये जिससे लोग हंसी
न उड़ा सकें। इस प्रकार भोग करो कि धन समाप्त न हो। इस प्रकार लड़ो कि शरीर को संतोष प्राप्त हो। इस प्रकार त्याग करो कि पुनः संग्रह न हो सके। इस प्रकार बोलो कि लोग प्रशंसा करें। ऐसे चलो कि स्वजनों को ईर्ष्या न उत्पन्न हो। इस प्रकार सुनो जिस प्रकार गुरु के पास रह सको। इस प्रकार मरो कि पुनः गर्भावास में न आना पड़े। इस प्रकार तप करो कि शरीर तप जाये। इस प्रकार राज्य करो कि शत्रु झुक जाये। शत्रु से आंशकित होकर जीने से क्या लाभ? मान से कलंकित जीवन से क्या लाभ? दान से रहित धन से क्या लाभ?
वंश को कलंकित करनेवाले पुत्र से क्या लाभ? 4. अज्ञानी के कानों में जिनवचन, गोठवस्ती के आंगन में उत्तम मणिरत्न, अकुलीन व्यक्ति में
सैकड़ों उपकार, चरित्रहीन व्यक्ति के लिए व्रत व्यर्थ । 5. सासें बहुत बुरी होती हैं वे महासतियों को भी दोष लगा देती हैं। 6. सुकवि की कथा के लिए दुष्ट की मति, कमलिनी के लिए हिमघन तथा अपनी बहुओं के
लिए दुष्ट सासें स्वभाव से शत्रु होती हैं।' 7. सासों तथा बहुओं का एक-दूसरे के प्रति बैर अनादिनिबद्ध है। जिस दिन पति इस बात
का विचार करेगा, उस दिन बहुत बुरा होगा।' 8. स्नेहहीन पत्नी से क्या लाभ? शत्रु को जाननेवाली कीर्ति से क्या लाभ? अलंकार-विहीन
सुकवि की कथा से क्या लाभ? कलंक लगानेवाली लड़की से क्या लाभ? 9. शरीर का नाश नहीं करना चाहिये। मृत्यु, ग्रहण और जय सब वीरों की होती है। केवल
पलायन करने से लज्जित होना चाहिये जिससे नाम और गोत्र कलंकित होता है।' अयोध्याकाण्ड 1. जो व्यक्ति शस्त्रों को छोड़कर चरणों में आकर गिरता है, उसको मारने से किसी प्रकार
यश प्राप्त नहीं होगा।