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________________ अपभ्रंश भारती -9-10 103 2. ब्राह्मण, बालक, गाय, पशु, तपस्वी तथा स्त्री इन छह को मानक्रिया छोड़कर बचा देना चाहिये। 3. अपण्डितों के मध्य एक पल भी ठहरना उचित नहीं होता है। 4. मानव में कुछ ऐसे व्यसन होते हैं जिन्हें कार्यरूप में परिणत करने से पाप लगता है, ये __ व्यसन इस प्रकार हैं- रात्रि में भोजन करते हुए मांस-भक्षण करना, मधु तथा मद्यपान करना, जीवों का वध करना, झूठ बोलना, परधन तथा परस्त्री में अनुरक्त होना।' 5. लक्ष्मी किसी के साथ एक कदम भी नहीं गयी है। 6. शत्रुता कभी नष्ट नहीं होती है और न ही जीर्ण होती है। सात जन्मांतरों तक आहत व्यक्ति ____ मारनेवाले को मारता है।' 7. पंचेन्द्रियां खल क्षुद्र पाप करनेवाली, नारकीय नरक में प्रवेश करनेवाली, रोग-व्याधि तथा दु:खों को बुलानेवाली, शिव के शाश्वतगमन का निवारण करनेवाली है। रूप से पतंग, रस से मछली, शब्द से मृग, गंध के वश से भ्रमर, स्पर्श से मतवाला गज विनाश को प्राप्त होता है परन्तु जो पांचों इंद्रियों का सेवन करता है उसका निस्तार कहीं नहीं होता है। 8. जो व्यक्ति मधु, मद्य तथा मांस का परित्याग करता है, छहों निकायों के जीवों पर दया करता है तत्पश्चात् सल्लेखनापूर्वक मृत्यु को प्राप्त होता है वह मोक्ष महापुरी में प्रवेश करता है। जो प्राणी वध करता है तथा मधु-मांस की कथा कहता है- वह चौरासी लाख योनियों में जाता है।" 9. जो मनुष्य रात्रि भोजन छोड़ देता है वह विमल शरीर तथा विमल गोत्र प्राप्त करता है। जो सुना हुआ भी नहीं सुनता, देखा हुआ भी नहीं देखता, किसी के द्वारा कहे गये को किसी से नहीं कहता, भोजन में मौन का पालन करता है वह शिव के लिए शाश्वत गमन को देखता है। 10. यदि राजा पौरुषहीन है तो उसका राजा होना व्यर्थ है जिस प्रकार दान से, जिस प्रकार सुकवित्व से, जिस प्रकार शस्त्र से, जिस प्रकार कीर्तन से, सब मनुष्यों की कीर्ति परिभ्रमण करती है, जिस प्रकार जिनवर से भुवन धवल होते हैं। इन बातों में से जिसे एक बात भी अच्छी नहीं लगती है वह जन्मा होकर भी मृत है। व्यर्थ ही उसे यम ले जाता 11. जो राजा अत्यंत सम्मान करनेवाला होता है, विश्वास करो कि वह अर्थ तथा सामर्थ्य का हरण करनेवाला होता है । जो मित्र अकारण घर आता है वह दुष्ट स्त्री का अपहरण करनेवाला होता है । जो पथिक मार्ग में अधिक स्नेह प्रदर्शित करता है वह स्नेहहीन चोर होता है। जो मनुष्य निरंतर चापलूसी करता है वह जीव का हरण करनेवाला शत्रु होता है। जो कामिनी कपटपूर्ण चाटुता करती है वह सिररूपी कमल को काटनेवाली होती है। जो कुलवधू कसमों से व्यवहार करती है वह सैकड़ों विद्रूपतायें करनेवाली होती है जो
SR No.521857
Book TitleApbhramsa Bharti 1997 09 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1997
Total Pages142
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size10 MB
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