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________________ अपभ्रंश भारती - 8 73 प्रस्तुत 'घत्ता' का अर्थ किया गया है - "ओहर और मगरों से भयंकर और दुष्प्रवेश्य उस नदी को राम ने ऐसे देखा मानो वह दुर्गति हो।" यहाँ भी अर्थव्यवस्था में शिथिलता आ गयी है। प्रसंगानुसार 'णयण-कडविलय' का अर्थ 'तिरछी आँखों से देखी गयी' तथा 'दुप्पेक्खिय' का अवज्ञापूर्वक अवलोकित हुई' होना चाहिए। इस प्रकार सम्पूर्ण घत्ता का अर्थ होगा - 'ओहर तथा मगर-मच्छों से भयावनी वह नदी तिरछी आँखों से देखी गयी, मानो, दुस्तर तथा दुष्प्रवेश्य दुर्गति (नरकगति) ही उपेक्षापूर्वक देखी गयी हो।' 40. तुम्हेंहिँ एवहिँ आणवडिच्छा । भरहहों भिच्च होह हियइच्छा ॥ 23.14.2 इस पंक्ति का उपलब्ध अर्थ है - "आज्ञापालक तुम लोग आज से भरत के सैनिक बनो।" यहाँ अनुवाद कुछ काल्पनिक-सा हो गया है। प्रसंगानुरूप 'एवहिँ' का अर्थ 'इसी प्रकार', 'आणवडिच्छा' (आज्ञप्रतीक्षकाः) का आज्ञाकारी, भिच्च (भृत्य) का 'सेवक' तथा 'हियइच्छा' (हृदयेष्टाः) का मनोभिलषित होना चाहिए। इस प्रक री पंक्ति का प्रासंगिक अर्थ होगा - तुम लोग इसी प्रकार भरत के भी मनोभिलषित आज्ञाकारी सेवक होवो। 41. लहु जलवाहिणि-पुलिणु पवण्णईं। णं भवियइँ णरयहाँ उत्तिण्ण. ॥ 23.14.8 इसका उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है - "शीघ्र ही वे नदी के दूसरे तट पर पहुँच गये मानो भव्यों ही को नरक से किसी ने तार दिया हो।" यहाँ दूसरे चरण की अर्थ-व्यवस्था थोड़ी शिथिल हो गई है। प्रसंगानुकूल इस पंक्ति का स्पष्ट अर्थ होना चाहिए - 'वे शीघ्र ही नदी के (दूसरे) तट पर पहुँच गये, मानो भव्यजन (शीघ्र ही) दुर्गति (नरक गति) के पार हो गये हों।' 42. वलिय पडीवा जोह जे पहु-पच्छले लग्गा । कु-मुणि कु-बुद्धि कु-सील णं पव्वजहें भग्गा ॥ 23.14.9 प्रस्तुत घत्ता का अर्थ किया गया है - "राम के पीछे लगे योधा-लोग भी अयोध्या के लिए उसी प्रकार लौट गये जिस प्रकार संन्यास ग्रहण करने पर कुमति, कुशील और कुबुद्धि भाग खड़ी होती है।" यहाँ भी अर्थव्यवस्था भावुकता के कारण शिथिल हो गयी है। प्रसंगानुसार इन पंक्तियों का अर्थ होना चाहिए - 'वे सभी योद्धा वापस लौट गये जो (अभी तक) प्रभु (राम) के पीछे लगे हुए थे। मानो कुबुद्धि एवं कुत्सित चरित्रवाले मिथ्यादृष्टि मुनि प्रव्रज्या से भाग खड़े हुए हों।' ___43. वलु बोलावें वि राय णियत्ता । णावइ सिद्धि कु-सिद्ध ण पत्ता ॥ 23.15.1 इस पंक्ति का हिन्दी अनुवाद है - "राम को विदा देते हुए राजा लोग बहुत व्यथित हुए। ठीक उसी तरह जिस प्रकार सिद्धि प्राप्त न होने पर खोटे साधक दुखी होते हैं।" यथार्थतः प्रस्तुत पंक्ति में व्यथा तथा दुःख-सूचक कोई शब्द ही नहीं है। इसका प्रासंगिक अर्थ होना चाहिए - 'राम को विदा देकर राजा लोग लौट गये, मानो, मिथ्याभिमानी सिद्धों को सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकी।'
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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