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अपभ्रंश भारती - 8
'आरुट्ठउ' का 'आरुष्ट' और 'अवलोइड' का अर्थ 'अवलोकित' है। इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होना चाहिए - "किसने प्रलयानल में अपने को अर्पित कर दिया है, किसने आरुष्ट शनिग्रह पर दृष्टि डाली है । "
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24.
जिउ कालु-कियन्तु महाहवें ॥ 23.7.8
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इस पंक्ति का उपलब्ध अनुवाद है 'यम का काल पूरा हो चुकने पर महायुद्ध में कौन बचा सकता है।" यहाँ अर्थ में काल्पनिकता आ गयी है। वस्तुतः ' 'कें' का अर्थ 'किसने', 'जिउ' का 'जीत लिया', 'कालु' का 'काल' और 'कियन्तु' का 'कृतान्त' (यम) है। इस प्रकार पूरी पंक्ति का हिन्दी अनुवाद होना चाहिए - 'किसने महायुद्ध में काल और कृतान्त को जीत लिया । ' 25. जसु पडन्ति गिरि सिंह - णाऍणं ॥ 23.8.4
इसका अनुवाद किया गया है - "पहाड़, सिंह और हाथी तक गिर पड़ते हैं"। यहाँ भी अनुवाद की शिथिलता चिन्तनीय है। इस प्रसंग में 'जसु' का अर्थ 'जिसके', 'पडन्ति' का 'गिर जाते हैं', 'गिरि' का 'पर्वत' और 'सिंह - णाऍणं' का अर्थ 'सिंहनाद से ' है । इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ हुआ 'जिसके सिंहनाद से पर्वत गिर जाते हैं अर्थात् धराशायी हो जाते हैं । ' 26. धणऍ रिद्धि सोहग्गु वम्मर्हे ॥ 23.8.7
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इसका उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है "धन में रिद्धि, वामा में सौभाग्य" । यथार्थ में ' धणऍ' का अर्थ ' धनद (कुबेर) में' और 'वम्महे' का 'मन्मथ (कामदेव) में' होना चाहिए। इस प्रकार पंक्ति का अर्थ होगा 'धनद में ऋद्धि (विभूति) और मन्मथ में सौभाग्य ( लावण्य) । '
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27. रज्जें किज्जइ काइँ तायों सच्च-विणासें ॥ 23.8.9
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पंक्ति का उपलब्ध अनुवाद है। " तातनाशक राज्य के करने से क्या ? यहाँ 'सच्च' शब्द सर्वथा उपेक्षित है, जिस कारण अर्थ में विकृति आ गयी है । इसके ग्रहण करने पर अर्थ होगा पिता के सत्य (वचन) को विनष्ट करनेवाले राज्य से क्या प्रयोजन ?
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28. जगु गिलेइ णं सुत्तु महाइय ॥ 23.9.4
इस पंक्ति का अर्थ किया गया है - "मानो वरिष्ठ उसने सोते हुए विश्व को लील लिया हो।" यहाँ पंक्ति के अन्तर्गत शब्दों के अन्वय पर समुचित ध्यान नहीं रखा गया है, जिस कारण अर्थ की संगति नहीं बैठ पाई है। अन्वय के अनुसार इसका अर्थ होना चाहिए - 'मानो महादृता ( गरिष्ठा) कालरात्री जग (विश्व) को निगलकर सो गयी हो । '
29. वासुएव - बलएव महव्वल साहम्मिय साहम्मिय- वच्छल ॥
रण-भर - णिव्वाहण णिव्वाहण णिग्गय णीसाहण णीसाहण ॥ 23.9.7-8
प्रस्तुत पंक्तियों का उपलब्ध अनुवाद है। - "तो महाबली, युद्धभार उठाने में समर्थ राम और लक्ष्मण ने माताओं तथा स्नेहीजनों से विदा माँगी और सवारी, शृङ्गार तथा प्रसाधन से हीन (निकले) । यहाँ प्रथमचरण का अर्थ तो 'महाबली राम और लक्ष्मण' ठीक ही है, किन्तु, अन्य का अर्थ यथार्थता के समीप नहीं रह गया है । 'पउमचरिउ' के प्रासंगिक टिप्पण के अनुसार