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________________ अपभ्रंश भारती - 8 "" इसका उपलब्ध अनुवाद है 'अथवा आप घर पर ही रहें, शत्रुघ्न, राम, लक्ष्मण और मैं वन को जाते हैं।" यहाँ ' अच्छहु' क्रियापद का अर्थ है 'रहें' और 'पुणुवि' अव्ययपद निश्चयसूचक है । इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होना चाहिए - शत्रुघ्न, राम, लक्ष्मण और मैं सबके सब घर पर ही रहें। भट्टारक! आप भी असत्यवादी न बनें, आप स्वयं राज्य का भोग करें। " 19. णीलक्खण णीरामुम्माहिय ॥ 23.4.5 इस पंक्ति का उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है - "उसकी आँखें नीली और अश्रुजल से डबडबाई हुई थीं। यहाँ 'णीलक्खण' का अर्थ है - 'निर्लक्षण' अर्थात् शुभलक्षणरहित तथा 'णीरामुम्माहिय' का 'नितरामुन्माधित' अर्थात् सर्वथाविनष्ट। इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होना चाहिए - 'शुभ लक्षणरहित तथा सर्वथाविनष्ट ।' 20. हरि-वल जन्त णिवारहि णरवइ ॥ 23.5.10 - इसका अर्थ किया गया है " जाती हुई राम की सेना को रोको ।" यहाँ 'हरि-वल' का अर्थ होना चाहिए - लक्षमण और राम, 'जन्त' का 'जाते हुए' तथा 'णरवइ' का 'नरपति' । इस प्रकार पंक्ति का स्पष्ट अर्थ होगा - 'हे नरपति! आप जाते हुए लक्ष्मण और राम को रोकें ।' उपलब्ध हिन्दी - अनुवाद में 'हरि-वल' का अर्थ 'राम की सेना' ले लिया गया है, जो प्रासंगिक नहीं है। 21. राय - वारु वलु वोलिउ जावेंहिँ 69 लक्खणु मर्णे आरोसिउ तावेंहिँ ॥ 23.7.1 इसका उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है - "राम के राजाज्ञा सुनाते ही लक्ष्मण को मन ही मन असह्य वेदना हुई'। यहाँ ' राय - वारु' का अर्थ है - 'राजद्वार' अर्थात् राजभवन का मुख्यद्वार, 'वलु' का 'राम', 'वोलिउ' का 'पार किया' और 'आरोसिउ' का 'आरुष्ट' । इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ हुआ - 'राम ने राजभवन के मुख्यद्वार को ज्योंहि पार किया, त्योंही लक्ष्मण अन्तः करण से (में) क्रुद्ध हो उठे ' । 22. णाइँ मइन्दु महा-घण-गज्जिऍ तिह सोमित्ति कुविउ गर्मे सज्जिऍ ॥ 23.7.3 इस पंक्ति का उपलब्ध अनुवाद है - "जैसे महामेघ गरजते हैं, वैसे ही लक्ष्मण जाने की तैयारी करने लगा ।" यहाँ ' मइन्दु' का अर्थ ' मृगेन्द्र', 'महाघणगज्जिए' का 'घोर घन-गर्जना पर ' और 'कुविउ' का अर्थ 'क्रुद्ध' है । इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होगा - 'घोर घन-गर्जना पर उत्तेजित मृगेन्द्र की तरह राम के वनगमन हेतु उद्यत हो चुकने पर लक्ष्मण क्रुद्ध हो उठे । ' 23. कें पलयाणलें अप्पर ढोइड कें आरुट्ठउ सणि अवलोइड ॥ 23.7.5 इसका अर्थ किया गया है - " प्रलय काल में कौन अपने को बचा सका है, शनि को देखकर कौन उचित हो सका ।" यहाँ 'पलयाणले' का अर्थ 'प्रलयानल में' 'ढोइउ' का ' अर्पित,
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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