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अपभ्रंश भारती - 8
यहाँ दोणु' का अर्थ 'दो' किया गया है। फलस्वरूप पूरी पंक्ति का अर्थ 'रानी से दो सन्तान उत्पन्न हुई, उनमें से कैकेयी वर्णन किस प्रकार किया जाय' करना पड़ा है। किन्तु, प्रसंग तथा सम्बद्ध ग्रन्थों के अनुसार 'दोणु' शब्द का अर्थ 'द्रोण' होना चाहिए। इस प्रकार पूरी पंक्ति का प्रासंगिक अर्थ होगा - उस (रानी) के 'द्रोण' नामक पुत्र और 'केकया' नाम की कन्या उत्पन्न हुई जिसका वर्णन क्या किया जाये ?
3. 'वरु आहणहाँ' कण्ण उद्दालाँ
रयणइँ जेम तेम महिपालों ॥ 21.3.5 __ इसका हिन्दी अनुवाद किया गया है - "इस राजा से कन्या वैसे ही छीनलो, जैसे सर्प से मणि छीन लिया जाता है।" यहाँ अनुवाद पूरा का पूरा काल्पनिक हो गया है। इसका. प्रासंगिक अर्थ होना चाहिए - 'वर को मार डालो और राजा के कन्यारत्न को जैसे-तैसे उड़ा लो।' यहाँ 'रयण'' का सम्बन्ध 'कण्ण' से है 'सर्प' से नहीं।
4. तं णिसुणेवि परिओसिय-जणएँ ॥ 21.4.1 इसका हिन्दी अनुवाद है - "यह सुनकर जनों को सन्तुष्ट करनेवाली (ने)---।" यहाँ 'जणएं' का अर्थ 'जनों को किया गया है। वस्तुतः 'जणएं' का संस्कृत रूपान्तर 'जनकेन' होना चाहिए, इस कारण पूरे समस्त पद का प्रासंगिक अर्थ होगा - 'पिता को सन्तुष्ट करनेवाली (ने)।'
5. दिण्णु देव पइँ मग्गमि जइयहुँ।
णियय-सच्चु पालिजइ तइयहुँ ॥ 21.4.5 इसका उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है - "देव, जब मैं माँगू तब देना, तब तक अपने सत्य का पालन करते रहिए।" यहाँ 'पइँ' का अर्थ है - 'आपने'। इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होना चाहिए - 'हे देव! आपने दिया, किन्तु, जब मैं माँगू तब अपने वचन (सत्य) का पालन किया जाये।'
6. जणउ वि मिहिला-णयरें पइट्ठ
समउ विदेहएँ रजें णिविट्ठउ ॥ 21.5.3 इसका उपलब्ध हिन्दी अनुवाद है - "जनक भी मिथिलापुरी में जाकर विदेह का राज्य करने लगे।" यहाँ 'विदेहएँ' पद का सम्बन्ध 'रज्जें' के साथ जोड़ दिया गया है, जब कि उसका सम्बन्ध 'समउ' के साथ होना चाहिए और 'विदेहा' (विदेहएँ) का अर्थ 'जनक (विदेह) की पत्नी' होना चाहिए, राज्य नहीं। इस प्रकार पूरी पंक्ति का अर्थ होगा - जनक भी मिथिलानगर में प्रविष्ट हुए और 'विदेहा' (रानी) के साथ राज्यासीन हुए।
वेढिय जणय-कणय दुप्पेच्छेहि वव्वर-सवर-पुलिन्दा-मेच्छेहि ॥ 21.6.1 गरुयासङ्घएँ बाल-सहायहाँ लेहु विसजिउ दसरह-रायहाँ ॥ 21.6.2