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________________ अपभ्रंश भारती - 8 29 शब्दार्थशासनविदः कवि नो कवन्ते यद्वाङ्मयं श्रुतिघनस्य चकास्ति चक्षुः । किन्त्वस्ति यद्वचसि वस्तु नवं सदुक्ति सन्दर्भिणा सधुरि तस्यगिरः पवित्रः ॥ प्रारंभ में संस्कृत-काव्य में वस्तु-वर्णन के क्षेत्र में पर्याप्त मौलिकता और नवीनता दिखायी देती है। महाकवि बाण इसके अद्वितीय उदाहरण हैं । संस्कृत भाषा में नगर-योजना संबंधी विपुल साहित्य मिलता है। अग्नि, गरुड़, मत्स्य और भविष्य पुराणों में नगर-योजना पर सविस्तार लिखा गया है। 'मानसार' ग्रंथ में नगर-विन्यास और व्यवस्था का बहुत विस्तृत विवरण मिलता है। उसमें नगर, खेट, खर्वट, पत्तन, कुब्जक आदि कई श्रेणियाँ बतायी गयी हैं । तंत्र और आगम ग्रंथों में भी नगर-वर्णन देखने को मिलता है। कामिकागम' और 'सुप्रभेदागम' में नगर-योजना पर प्रकाश डाला गया है। महाराज भोज के राज्यकाल में लिखा गया 'समरांगणसूत्रधार' में नगरयोजना का विस्तृत विवरण है। सबसे सुन्दर नगर वर्णन 'पादताडितकम' भाणी में मिलता है। इसके रचयिता श्यामलिक हैं। श्यामलिक ने नगर को सार्वभौम मानकर उसका वर्णन किया है - 'बाज़ार (विपणि) में स्त्री-पुरुषों की भीड़ लगी रहती थी जो जल और थल-मार्गों से लाये हुए सामानों के बेचने में व्यस्त रहते थे। लोगों के धक्के-मुक्के और हुल्लड़ से ऐसा शोर होता था जैसा चरागाहों में गायों का या संध्याकालीन आवास पर कौवों का होता था। कारीगरों की धड़धड़ और दस्तकारों की टन-टन कानों को फोड़ती थी। लुहारों के कारखानों में निरन्तर खटखट होती रहती थी। कसेरे जब बरतनों को खरादकर उतारते थे तो कुररी जैसा शब्द होता था। शंखकार जब छेनियों से शंखों को तरासते थे तो सैं-सैं की आवाज़ आती थी, जैसे घोड़े जोर से साँस ले रहे हों। मालाकारों की दुकानों पर फूल और गज़रे सजे थे और शौंडिकों की शालाओं में सुरा के चषक चलते थे। बाज़ार में सब दिशाओं से आये हुए लोगों की इतनी भीड़ होती थी कि चलने को रास्ता नहीं मिलता था'।' ___ मध्यकालीन साहित्य में वर्णित वस्तु-वर्णन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है भारतीय पद्धति पर मुसलमानी प्रभाव के अंकन का परिज्ञान । मुसलमानी आक्रमण ने न केवल हिन्दू राज्यों को नष्ट किया बल्कि हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक स्थितियों में क्रान्तिकारी परिवर्तन भी लाया। मुसलमानों के आक्रमण का सबसे अधिक प्रभाव भारतीय नगर-जीवन पर पड़ा। डॉ. खलीक अहमद निज़ामी ने इस प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए लिखा है - "उत्तरी भारत पर तुर्की आक्रमण और आधिपत्य का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि नगर-योजना की प्राचीन पद्धति छिन्नभिन्न हो गयी। मुसलमानों के सार्वभौम नगरों ने राजपूत युग के जातीय नगरों का स्थान ले लिया। श्रमिकों, कारीगरों और चाण्डालों के लिए नगरों के द्वार खोल दिये गये। नगरों के परकोटे निरन्तर सरकते और बढ़ते रहे। इनके भीतर ऊँच और नीच सब प्रकार के लोगों ने अपने घर बनाये और वे एक-दूसरे के साथ बिना किसी सामाजिक भेदभाव के रहने लगे। यह योजना तुर्क प्रशासकों को पसन्द आयी, जो अपने कारखानों, दफ्तरों, घरों में काम कराने के लिए सभी श्रमिकों को अपने पास रखना चाहते थे। फलतः नगरों का विस्तार हुआ और समृद्धि बढ़ी।1० मध्यकालीन नगरों में चौरासी हाटों का वर्णन विभिन्न ग्रंथों में मिलता है। माणिक्यचन्द्र सूरि ने वाग्विलास (पृथ्वीचन्द्र चरित्र) में चौरासी हाटों के नाम गिनाये हैं, उनमें से कुछ इस प्रकार
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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