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________________ 30 अपभ्रंश भारती हैं - (1) सोनी हटी, (2) नाणावर हटी, (3) सौगंधिया हटी, (4) फोफलिया, (5) सूत्रिया, (6) षडसूत्रिया, (7) घीया, (8) तेलहरा, ( 9 ) दन्तरा, (10) बलीयार, (11) दोसी, (12) मणीयारहटी, (13) नेस्ती, (14) गंधी, (15) कपासी, (16) फडीया, ( 17 ) फडीहटी, (18) एरंडिया, (19) रसणीया, (20) प्रवालीया, (21) सोनार, (22) त्रांबहटा (ताम्र ), (23) सांषहटा, (24) पीतलगरा, (25) सीसाहडा, (26) मोतीप्रोया, ( 27 ) सालवी, (28) मीगारा, (29) कुँआरा, (30) चूनारा, (31) तूनारा, (32) कूटारा, (33) गुलीयाल, (34) परीयटा, (35) द्यांची, ( 36 ) मोची, (37) सुई, (38) लोहटिया, (39) लोढारा, (40) चित्रहरा, ( 41 ) सतूहारा इत्यादि । इक सों बने धवल आवास । मठ मंदिर देवल चउपास ॥ चौरासी चौहट्ट अपार । बहुत भाँति दीस सुविचार ॥ " इसी प्रकार सधार अग्रवालकृत 'प्रद्युम्नचरित' (1411 वि. सम्वत्) में भी चौरासी हाटों का वर्णन मिलता है - - - 8 - प्राचीन वाङ्मय में वस्तुवर्णन अनेक रूपों में पाया जाता है। उनमें से कुछ इस प्रकार हैं उपवन, दरवार, दारषोल, दारिगह, वारिगह, निमाजगह, षोरमगह, प्रासाद, प्रमदवन, पुष्पवाटिका, कृत्रिम नदी, क्रीड़ाशैल, धारागृह, शृंगार-संकेत, माधवी - मण्डप, विश्राम - चौरा, चित्रशाली, खट्वाहिंडोल, कुसुमशय्या, प्रदीपमाणिक्य, चन्द्रकान्त शिला, चतुस्समपल्लव, वेश्याहाट, अलकातिलका, अश्ववर्णन, हस्तिसेना, सैन्य- संचरण, युद्ध-वर्णन आदि। अपभ्रंश कवियों ने महाकाव्यों, चरित और कथाकाव्यों में भरपूर वस्तु-वर्णन किया है। जौनपुर के शाही महल के वर्णन में विद्यापति ने भारतीय और मुसलमानी भवन-निर्माण कला की जानकारी का सूक्ष्म परिचय दिया है। वहाँ प्रमुख द्वार की ड्योढ़ी में नंगी तलवारें लिये द्वारपाल खड़े थे। दरबार के बीच में सदर दरवाजे से चलकर शाही महल का लम्बा-चौड़ा मैदान, दरगाह, दरबारे आम, नमाज - गृह, भोजन गृह और शयन - गृह बने हुए हैं - अहो अहो आश्चर्य! ताहि दारखोलहि करो दवाल दरवाल ओ ॥ 2.238 ॥ ञेञोन दरबार मेञोणे दर सदर दारिगह वारिगह निमाजगह षोआरगह, करेओ चित्त चमत्कार देषन्ते सब बोल जनि अद्यपर्यन्त विश्वकर्मा यही कार्य छल ॥ 2.241 ॥ 2 षोरमगह ॥ 2.239 ॥ भल ॥ 2.240 ॥ महापुराण पुष्पदन्त द्वारा रचा गया महाकाव्य है। इसमें जनपदों, नगरों और ग्रामों का वर्णन बड़ा ही भव्य बन पड़ा है। कवि ने नवीन और मानव-जीवन के साथ संबद्ध उपमानों का प्रयोग कर वर्णनों को बड़ा सजीव बनाया है। मगध देश का वर्णन करता हुआ कवि कहता है - - जहिं कोइलु हिंडइ कसण पिंडु वण लच्छिहे णं कज्जल करंडु | जहिं सलिई मारुथ पेल्लियाइं रवि सोसण भएण व हल्लियाई ॥ जहिं कमलहं लच्छिइ सहुं सणेहु सहुं ससहरेण वड्ढि विरोहु । किर दो विताई महणु व्भवाइं जाणंति ण तं जड संभवई ॥ जुज्झंत महिस वसहुच्छवाई मंथा मंथिय मंथणि रवाई || 3
SR No.521856
Book TitleApbhramsa Bharti 1996 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1996
Total Pages94
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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