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अपभ्रंश भारती 7
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बनाई थी जिसके लिए उन्हें बिड़ला परिवार से अनुदान भी मिला था परन्तु उनके असामयिक एवं दु:खद निधन से यह महत्त्वपूर्ण कार्य अपूर्ण रह गया। वास्तव में इसी प्रकार के योजनाबद्ध वैज्ञानिक कार्य की अतीव आवश्यकता है जिससे हिन्दी साहित्य के तथाकथित विवादास्पद ग्रंथों का निष्पक्ष मूल्यांकन हो सके। डॉ. त्रिवेदी की अभी समस्त कृतियां प्रकाशित नहीं हुई हैं परन्तु उनका जितना भी प्रकाशित तथा अप्रकाशित साहित्य है वह महत्त्वपर्ण तथा मौलिक है। आदिकालीन हिन्दी साहित्य में अपनी वैज्ञानिक मान्यताओं तथा गंभीर एवम विद्वत्तापर्ण सिद्धान्तों के प्रतिष्ठापन हेतु डॉ. त्रिवेदी सदैव स्मरणीय रहेंगे।
1. विचार और विवेचन, डॉ. विपिनबिहारी त्रिवेदी, पृ. 56, पारुल प्रकाशन, लखनऊ । 2. चंद्रभानु गुप्त अभिनन्दन ग्रंथ, प्रधान संपादक - डॉ. दीनदयालु गुप्त, पृ. 272 ।
शोधार्थी
हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ