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अपभ्रंश भारती7
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प्राकृत, गुजराती, राजस्थानी, अपभ्रंश और हिन्दी रूप दृष्टिगोचर होते हैं। यह अनूठी शैली इस ग्रंथ में आद्योपांत दृष्टिगत होती है। स्वरों तथा व्यंजनों के परिवर्तन से संबंधित कतिपय उदाहरण द्रष्टव्य हैं - स्वर - नारि, नारी, नारिय।
अकास, आकास, आयास। रिष, रिषि, रिषी, रिष्य, ऋषि।
सैल, सयल, सइल, सेलह, शेल। व्यंजन - पहुकर, पोखर।
अग्नी, अगनि, आगि, आग। सिव, शिव, सिभ।
अदम्भुत, अदब्बुद। 'पृथ्वीराजरासो' की भाषा का अध्ययन करने में अनेक समस्यायें आती हैं क्योंकि इसमें वैदिक, संस्कृत, पालि, पैशाची, अर्धमागधी, महाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी आदि द्वितीय स्तर की प्राकृतों, अपभ्रंश, देश्य, प्राचीन राजस्थानी, प्राचीन गुजराती, पंजाबी, ब्रज प्रभृति भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अरबी, फारसी तथा तुर्की के अनेक शब्दों का संयोग मिलता है। त्रिवेदीजी के अनुसार उक्त महाकाव्य में पंजाबी भाषा के शब्दों का सीमित प्रयोग मिलता है तथा अरबी, फारसी तथा तुर्की भाषा के शब्दों की संख्या लगभग 500 है। त्रिवेदीजी के मत में इन शब्दों का प्रयोग तत्सम् रूप में कम तथा अपनी आवश्यकतानुसार यथारूप देकर अधिक किया गया है। इस ग्रंथ की भाषा की दुरूहता को बढ़ाने में सर्वाधिक सहायक देश्य शब्द हैं जो इसमें प्रयुक्त हुए हैं । त्रिवेदीजी ने पृथ्वीराज रासो में प्रयुक्त विभिन्न भाषाओं के शब्दों के संक्षेप में उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं -
देश्य शब्द - जूका, बागुर, कुटवार, पोगर, बिलहान, बालर, रमून, पोल, ठोठ, ढीमर, बजूआ, इचना प्रभृति।
पंजाबी भाषा के शब्द - रहंदी, हनंदे, सुहंदी, परछी, कूकटा, आवंदा, कनवजां, उपन्ना, जन्ना, धन्ना, हंसाइया, पाइयां इत्यादि। ____ अरबी, फारसी तथा तुर्की के शब्द - इनमें अधिकांशत: अरबी, फारसी के हैं,- कुछ तुर्की के हैं, यथा – हमीर ( अमीर), हज्जार, सहर, आबादि, अकलि, महल, आतस्स, सिकार, वज्जीर, गस्त, मस्साल, मुकाम, कुदरति इत्यादि। ___ 'पृथ्वीराज रासो' के भाषा संबंधी अध्ययन में डॉ. त्रिवेदी ने अनेक अन्य तथ्यों को भी नवीनता के साथ उद्घाटित किया है। यथा - रेफ का पूर्ण वर्ण में संयुक्त होना तथा रेफवाले वर्ण का दूना होना, रेफ का लोप तथा रेफवाले वर्ण का द्वित्व होना, आधे र का पूर्ण वर्ण होना, य के स्थान पर ज, क्ष के स्थान पर ख, ण के स्थान पर न, ज्ञ के स्थान पर ग्य या ग, ग के