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________________ प्रभावित है और सूरदास के गेय पदों में 'गाथा सप्तशती' की झलक मिलती है। मीरा की वाणी अपभ्रंश लोकगीत परम्परा के अत्यन्त निकट है। मध्यकालीन हिन्दी कविता और रीतिकालीन शृंगारी काव्य भी अपभ्रंश के शृंगार काव्य से अत्यधिक प्रभावित हैं।" "हिन्दी काव्य का विषय ही नहीं उसकी रचनाशैली और छन्दों पर भी अपभ्रंश साहित्य का स्पष्ट प्रभाव है। अलंकारों के लिए भी हिन्दी अपभ्रंश की ऋणी है। ध्वन्यात्मक शब्दों का प्रयोग भी हिन्दी में अपभ्रंश से आया। अपभ्रंश की अनेक लोकोक्तियों, मुहावरों और कथानक रूढ़ियों को भी हिन्दी ने सहर्ष अपना लिया है।" "इस तरह, भावपक्ष और कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से हिन्दी साहित्य अपभ्रंश साहित्य से प्रभावित है। यही कारण है कि अपभ्रंश की प्रासंगिकता आज भी बनी हई है और अध्येता आज भी अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्ययन की अनिवार्यता को शिद्दत के साथ महसूस करते "महाकवि स्वयंभू के परम्पराबद्ध प्रकृति-चित्रण में अलंकारों का खुलकर प्रयोग हुआ है। महाकवि पुष्पदन्त ने भी अपने 'महापुराण' में प्राकृतिक दृश्यों की झड़ी लगा दी है। प्राकृतिक दृश्य चित्रण में प्रकृति का आलंबनरूप में मनोमुग्धकारी चित्र प्रस्तुत करना 'महापुराण' की विशेषता है। इस परम्परा में भविसयत्तकहा, हरिवंशपुराण, जसहरचरिउ, जम्बूसामिचरिउ, करकण्डचरिउ, पउमसिरिचरिउ आदि अनेक अपभ्रंश काव्यों को देखा जा सकता है।" "अपभ्रंश काव्यों की परम्परा में लौकिक खण्ड काव्य 'संदेश-रासक' का प्रकृति-चित्रण की दृष्टि से कई अर्थों में विशेष महत्व है। यह रचना एक प्रकार से प्रकृतिपरक जनभावना की सहज अभिव्यक्ति है। प्राकृतिक सौन्दर्य ने भौगोलिक सीमाओं को भी सजीव कर दिया है। 'संदेशरासक' का पाठक पथिक और रमणि के दृश्य-चित्रण में खो जाता है । वह तादात्म्य स्थापित कर ऐसा अनुभव करता है जैसे वह स्वयं खुली प्रकृति के आँगन में आ खड़ा हुआ हो। यही 'संदेश रासक' के प्रकृति-चित्रण की विशेषता है।" "अध्यात्मवेत्ता कवि मनीपी जोइन्दु अपभ्रंश साहित्य के कुन्दकुन्द माने जाते हैं। वे एक आत्मसाधक योगी थे। उन्होंने जीवनभर आत्माराधना की और आत्मा को ही अपनी रचनाओं का केन्द्र-बिन्दु बनाकर अध्यात्म-क्षेत्र को नया आयाम दिया।" "मोक्ष पुरुषार्थ से अनुप्राणित जोइन्दु की कृतियों का कथ्य आत्मोद्धारक है। इनमें आत्मा के विभिन्न रूपों की विवेचना है। बहिरात्मा को अन्तरात्मा/आत्मज्ञानी बनने का सन्देश दिया गया है।" __ "डॉ. त्रिवेदी का रासो सम्बन्धी अध्ययन मौलिक, वैज्ञानिक, तर्कपूर्ण तथा विचारोत्तेजक है। उन्होंने एक नये सिरे से रासो के विविध पक्षों को उद्घाटित किया।" .. "अपभ्रंश लौकिक धरातल पर उतरकर अन्तर्घान्तीय भाषा बनती चली जा रही थी। भारत के एक छोर से लेकर दूसरे छोर तक अपभ्रंश के कवियों का काव्य-निर्माण इस बात का स्पष्ट प्रमाण है । छठी शताब्दी से लेकर 14वीं-15वीं शताब्दी तक अपभ्रंश और उत्तरवर्ती अपभ्रंश या (iv)
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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