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अपभ्रंश भारती 7
अक्टूबर 1995
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रासो साहित्य के आधुनिक अध्येता डॉ. विपिनबिहारी त्रिवेदी
- सुश्री मंजु शुक्ल
डॉ. विपिनबिहारी त्रिवेदी आदिकालीन साहित्य, अपभ्रंश तथा प्राकृत भाषा के नदीष्ण विद्वान थे। उन्होंने महाकवि चंदवरदायी-कृत अपभ्रंश भाषा में निबद्ध 'पृथ्वीराज रासो' जैसे विवादास्पद एवं चुनौतीपूर्ण ग्रंथ पर महत्त्वपूर्ण कार्य किया। उक्त विषय पर उन्होंने अपनी मान्यताओं को अत्यन्त विचारोत्तेजक एवं तर्कपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया। उनके अध्ययन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि उन्होंने 'पृथ्वीराज रासो' की ऐतिहासिकता के स्थान पर उसके साहित्यिक सौन्दर्य को उद्घाटित किया ।
डॉ. त्रिवेदी की कृतियों में 'चंदवरदायी और उनका काव्य', 'रेवातट समय', 'काव्यविवेचन', 'असनी के हिन्दी कवि', 'विचार और विवेचन', 'अपभ्रंश प्रवेश', 'पृथ्वीराज रासो : एक समीक्षा', 'वेलि क्रिसन रुक्मिणी री', 'प्रिथीराज री कही एक विश्लेषण', 'हिन्दी साहित्य का आदिकाल', 'साहित्य और समीक्षा', 'आधुनिक हिन्दी काव्य', 'चंदवरदायी का भारत', 'रासो शब्दकोष', 'अपभ्रंश के दो महाकाव्य', 'हिन्दी साहित्य में संगीत', 'हिन्दी साहित्य का
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• लेखिका डॉ. त्रिवेदी के साहित्य पर शोधकार्य कर रही हैं। उन्होंने अपने स्नातकोत्तर स्तरीय लघुशोध प्रबन्ध के द्वारा डॉ. त्रिवेदी के साहित्य को उद्घाटित करने का प्रयास किया। प्रस्तुत लेख में त्रिवेदीजी के रासो सम्बन्धी अध्ययन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।