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________________ 76 अपभ्रंश भारती7 तहिँ पुरवरु णामें कणयउरु लवणण्णवहिमगिरिमेरमेत्ति एत्थु जि विक्खायइ भरहखेत्ति । मगहा णामें जणवउ वरिट्ठ मणहरु कइकव्वसएहिँ दिछ । . पक्केहिँ कलमकणिसहिँ घणेहिँ सुयमुहहयझणझणरवकणेहिँ । जहिँ खेत्तहँ पयसंचारु णत्थि उववणहिँ णिरुज्झइ रविगभत्थि । णग्गोहरोहपारोहएहिँ हिंदोलंती कयसोहएहिँ । जहिँ सुंदररूवावेक्खिणीऍ हालिणि व णिहालिय जक्खिणीएँ घत्ता - तहिँ पुरवरु णामें कणयउरु भूरिकणयकोडिहिँ घडिउ । अलि कसणहिँ पीयहिँ पंडुरहिँ उप्परि माणिक्कहिँ जडिउ ॥ १३॥ णायकुमारचरिउ, 1.13 लवण समुद्र और हिमवान् पर्वत से घिरे हुए इसी विख्यात भरत क्षेत्र में मगध नाम का मनोहर व श्रेष्ठ जनपद है जिसका वर्णन कवियों द्वारा सैकड़ों काव्यों में किया गया है। इस प्रदेश में शुकों के मुखों से आहत होने पर झन-झन ध्वनि करनेवाले पके धान की सघन बालों के कारण खेतों में पैर रखने को स्थान नहीं रहता, और उपवन ऐसे घने हैं कि उनमें सूर्य की रश्मियाँ भी प्रवेश नहीं पातीं। यहाँ वटवृक्षों के प्रारोहों से झूलती हुई शोभायमान किसान स्त्रियों के सुन्दर रूप से आकृष्ट होकर मानो यक्षिणी भी एकटक देखती रहती है। ऐसे मगध जनपद में कनकपुर नामक नगर है जो प्रचुर सुवर्ण के पुंजों से घटित है और उसपर ऊपर से भौंरों के समान नीले-पीले और श्वेत माणिक्य जड़े गये हैं ॥ १३ ॥ अनु. - डॉ. हीरालाल जैन
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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