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अपभ्रंश भारती 7
नहीं कर सकता । प्रासंगिकता की कसौटी समाज की प्रगतिशीलता से घनिष्ठता के साथ जुड़ी हुई है, इसमें अपभ्रंश की भूमिका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है।
1. दोहाकोश, सरहपाद, संपा. - पं. राहुल सांकृत्यायन, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, भूमिका, पृष्ठ 7 ।
2. हिन्दी काव्यधारा, अवतरणिका, पृष्ठ १ ।
3. वही, पृष्ठ 3 ।
4. हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग, डॉ. नामवर सिंह, पृष्ठ 16 ।
5. हिन्दी - साहित्य का आदिकाल, आचार्य डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ 1 ।
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6. द्रष्टव्य - दोहाकोश; पृ. 20, कबीर ग्रंथावली, पृष्ठ 130 1
7. संदेश - रासक, अब्दुल रहमान, प्रथम प्रक्रम, छंद सं. 8, पृष्ठ 148 ।
8. उपरिवत्, छंद सं. 10, पृष्ठ 148 ।
9. उपरिवत्, छंद सं. 12, पृष्ठ 148 ।
10. उपरिवत्, छंद सं. 13, पृष्ठ 148 ।
11. हिन्दी साहित्य का आदिकाल, पं. हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ 98 ।
12. उपरोक्त ।
13. उपरोक्त ।
14. सिद्धहेम शब्दानुशासन, आचार्य हेमचन्द्र, 340.2 ।
15. उपरिवत्, 395.6 ।
16. उपरिवत्, 364.1
17. उपरिवत्, 343.2 ।
18. हिन्दी काव्यधारा, सम्पा. पं. राहुल सांकृत्यायन, बब्बर, छंद सं. 196, पृष्ठ 314 । 19. उपरिवत्, छंद सं. 195, पृष्ठ 314 1
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प्रोफेसर एवं अध्यक्ष हिन्दी विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी 221005