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अपभ्रंश भारती7
धवलु विसूरइ सामिअहो गुरुआ भरु पिक्खेवि ।
हउँ कि न जुत्तउ दुहुँ दिसिहि खण्डइँ दोण्णि करेवि ॥" किसान की जिन्दगी, मान-प्रतिष्ठा, सब-कुछ है उसकी दो बीघा जमीन । वह उसकी रक्षा के लिए जिन्दगीभर संघर्ष करता है । कर्ज के लिए शोषक तत्वों से जुड़ता है। वे उसे जोंक की तरह चूसते रहते हैं। कर्ज से लदा-फदा, सूद-दर-सूद लेता-देता वह अपनी जमीन को रेहन रखता है, यह जानते हुए कि वह अब लौटनेवाली नहीं है। यह भार पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। गोदान के होरी के पुत्र गोबर की तरह ऐसे ही एक किसान का लड़का विद्रोह के स्वर में चीत्कार करता हुआ आत्मालोचन कर उठता है; बहुआयामी अर्थ को लिये हुए दोहा - उस पुत्र के रहने से कौन लाभ और न रहने से क्या हानि जिसके बाप की भूमि दूसरे के द्वारा चाँप ली जाय, हड़प ली जाय -
पुत्ते जाएँ कवणु गुणु अवगुणु कवणु मुएण।
जा बप्पी की भुंहडी चम्पिज्जइ अवरेण ॥5 गरीबी का आलम होते हुए भी किसान प्रकृति से धर्मपरायण, परोपकारी, हितरक्षक और शरणदाता होता है। गोदान का होरी तो इसी में अपने का मारता जाता है पर हारता नहीं। इन छोटे तबके के लोगों की तुलना में तथाकथित 'ऊँच निवास नीच करतूती। देखि न सकहिं पराय विभती' की संवेदनाएं कंठित होती हैं। एक साहसी किसान अथवा छोटे जन की पत्नी की यह उक्ति कि - यदि तुम किसी बड़े घर के बारे में पूछ रहे हो तो ऊँची हवेलियोंवाले घर वे रहे। परन्तु कष्ट में पड़े लोगों के उद्धार करनेवाले के बारे में पूछ रहे हो तो मेरे कान्त के इस कुटीर को देखो -
जइ पुच्छह घर बड्डाइं तो बड्डा घर ओइ ।
विहलिअ-जण-अब्भुद्धरणु कन्तु कुडीरइ जोइ ॥" विषम परिस्थितियों से घिरे छोटे जनों में झंझलाहट, खीझ और गुस्सा का होना स्वाभाविक ही होता है। गुस्सा और पानी हमेशा नीचे की ओर ही उतरता है। पत्नी की प्रताड़ना और कभीकभी दूसरी स्त्री की ओर जाने की स्वच्छन्दता का सहारा भी इसी क्रम में होता है। पर नारी की सहनशीलता का गुण अपने आप में एक उदाहरण है। एक स्त्री की यह अभिव्यक्ति कि - सखि! प्रिय नाखुश हो गया है, अप्रियकारक हो गया है फिर भी तू उसे मनाकर घर ले आ। अग्नि घर को जला देती है तो भी क्या उसे अपने पास नहीं रखा जाता -
विप्पिअ-आरउ जइ वि पिउ तो वि तं आणहि अज्जु ।
अग्गिण दड्ढा जइवि घरु तो तें अग्गिं कज्जु ॥” गरीबी की मार बड़ी गहरी होती है। महाकवि तुलसीदास ने उचित ही कहा है कि 'नहिं दारिद्र्य सम दुःख जग माहीं।' द्रव्य जीवन में विविध मोड़ ला देता है। गरीब दूर से देखता है कि जिनके पास बुद्धि है, शुद्धि है, दान है, मान है, गर्व है तो यह द्रव्य के कारण ही है। दैवयोग