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________________ 50 अपभ्रंश भारती7 पुनः करकंड सिंहल द्वीप पहुँचता है और राजपुत्री रतिवेगा से विवाह करता है। लौटने पर जल-मार्ग में उसकी नौका पर एक मच्छ धावा करता है । करकंड समुद्र में कूदकर मच्छ को तो मार देता है, पर लौटकर नहीं आता। समुद्र में ही एक विद्याधर की पुत्री उसका अपहरण कर लेती है। उधर रतिवेगा दुःखी होकर पूजा-पाठ में जुट जाती है। किंतु, कुछ दिनों बाद नववधू-सहित करकंड रतिवेगा से आ मिलते हैं। इसके बाद वह द्रविड़ राजाओं पर विजय प्राप्त करके, उनके मस्तकों पर पैर रखते हैं कि जिन-प्रतिमा के दर्शन होते हैं इससे वे बड़े दु:खी होते हैं तथा उनका राज्य लौटाना चाहते हैं। लेकिन वे स्वीकार नहीं करते। करकंड पुनः तेरापुर लौटते हैं; तभी कुटिल विद्याधर मदनावली को लाकर उन्हें सौंप देता है। तदुपरि, रानियों के साथ चंपापुरी लौटकर राज-सुख भोगने लगते हैं। एक दिन वनमाली उपवन में शीलगुप्त नामक मुनि के आगमन की सूचना देता है। करकंड परिवार तथा परिजनों के साथ भक्ति-भाव से उनके दर्शनार्थ प्रस्थान करता है। रास्ते में पुत्र-शोक में व्याकुल एक अबला को देखकर उसके हृदय में वैराग्य उत्पन्न होता है । मुनि के पास पहुँचने और धर्मोपदेश से वैराग्य प्रबल हो जाता है। करकंड उनसे तीन प्रश्न करता है। मुनि उसके पूर्वजन्म की कथा कहकर उनका समाधान करते हैं। रानियों को भी व्रत एवं तप का महत्त्व बतलाते हैं। तत्पश्चात् करकंड अपने पुत्र को राज्य देकर मुनि हो जाते हैं और पद्मावती तथा अन्य रानियाँ भी अर्जिका बनकर धर्मानुसरण करती हैं। इस प्रकार कथा की इतिश्री हो जाती है। करकंड की इस मूल कथा में अन्य अवांतर कथाओं का भी विधान किया गया है। ऐसी प्रथम चार कथाएँ द्वितीय संधि में वर्णित हैं । पाँचवीं कथा पाँचवीं संधि में निबद्ध है तथा छठी कथा भी इसी के अंतर्गत एक अन्य कथा है। इन्हें विद्याधर शोकाकुल करकंड को शांति एवं पुनः संयोग-हेतु सुनाता है । सातवीं कथा सातवीं संधि में तथा सातवीं-आठवीं संधि की आठवीं कथा को पद्मावती ने शोक-संवलित रतिवेगा को सुनाया है। नौवीं कथा एक तोते की कथा के रूप में आठवीं कथा का ही अंग है । इसे मुनिराज ने पद्मावती को यह समझाने के लिए सुनाया कि नारी भी अपने नारीत्व का त्याग कर सकती है। इनमें से कुछेक कथाएँ तो निश्चय ही तत्कालीन समाज में प्रचलित रही होंगी और कुछेक रचयिता की कल्पना की उपज हैं। शुक की कथा संस्कृत-साहित्य में भी मिलती है। जिस प्रकार प्रबंध-काव्यों में मूल या आधिकारिककथा को विकसित करने अथवा गंतव्य तक पहुँचाने के लिए अनेक प्रासांगिक कथाओं का विधान किया जाता है ; वैसा यहाँ इन अवान्तर कथाओं का कोई योगदान नहीं है। किसी घटना अथवा उससे जुड़े किसी महत्त्वपूर्ण बिन्दु को समझाने या स्पष्ट करने के प्रयोजन-मात्र से इनका संघटन किया गया है। ___ इस प्रकार प्रस्तुत प्रबन्ध की मूल कथा छोटी-छोटी कई कथाओं के मेल से शृंखलाबद्ध है। फिर भी, कथा-संघटन में जटिलता न होकर सरलता ही मिलती है। घटनाएँ धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं और संघर्षों की क्रिया-प्रतिक्रिया में उग्र बनकर चरम सीमा पर पहुँच जाती हैं। अंत में, पुनर्जन्म के सिद्धान्त को स्थापित करने एवं जन्म-जन्मान्तरों के कथा-सूत्रों से जोड़ने में कथा
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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