SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश भारती 7 हैं । प्रकृति के इस असीम सौन्दर्य को महाकवि ने गहराई से अनुभव किया है और उसे अपनी कलात्मक कल्पना के सहयोग से मोहक वाग्वैखरी प्रदान की है और उनके द्वारा प्रस्तुत प्रकृतिसौन्दर्य के चित्रों में यथार्थ के साथ आदर्श का भी स्वल्पाधिक समावेश दृष्टिगत होता है। 46 महाकवि का सौन्दर्यबोध यदि ऐन्द्रिय प्रत्यक्ष से सम्बद्ध है, तो सौन्दर्य के ग्रहण में उनके अन्त:करण का योग भी आपेक्षिक महत्त्व रखता है। कहना न होगा कि महाकवि ने अपने सौन्दर्यचित्रण में आध्यात्मिक वृत्ति, गहन आन्तरिकता और विभिन्न इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य प्रकृति-प्रेम को प्रचुर मूल्य प्रदान किया है। इसलिए समष्टि सर्जना की ओर उन्मुख महाकवि की सौन्दर्यानुभूति सहज ही कलानुभूति में परिणत हो गई है। पी. एन. सिन्हा कॉलोनी भिखना पहाड़ी पटना-800006
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy