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________________ अपभ्रंश भारती 7 तंबतालु तंबिरजीहादलु, तंबणयणु तंबिरकरकमयलु । तंबाहरु सुतंबणहमंडलु, णिद्धदंतपंती सियणहयलु । इक्केक्करोम हेमवण्णुल्लउ, लिंगकंठजंघहिँ मडहुल्लउ । णाहिसोत्तुघोसें गंभीरउ, उरयलि कडियलि पविउलधीरउ । पत्तलपेट्टु मझे संकिण्णउ, दीहबाहु समसंगयकण्णउ । णा णिज्जियचंपयहुल्लउ, णीलणिद्धमउलियधम्मिल्लउ । पेक्खड़ जहिँ जहिँ जणु तहिँ तहँ जि सुलक्खणभरियउ । वण्णइ काइँ कई जगे वम्महु सइँ अवयरियउ ॥ 3.4 ॥ 45 अर्थात्, जब वह पुरुषसिंह नवयौवन को प्राप्त हुआ तब ऐसा प्रतीत हुआ जैसे स्वर्ग से इन्द्र उतर आया हो। वह व्यसनहीन, स्वच्छ, क्रोधरहित, शूरवीर, महापराक्रमी, उचित कार्य के प्रति सतत सचेष्ट, दूरदर्शी, दीर्घसूत्रता के दोष से रहित, बुद्धिमान, गुरु और देव का भक्त, सौम्य, सरलहृदय, दानी, उदार और ज्ञानी पुरुषोत्तम के रूप में प्रतिष्ठित था। वह अपनी पंचेन्द्रिय पर नियन्त्रण रखनेवाला अतिप्रशस्त युवा था । स्थिरमतिवाला वह विद्वद्वन्दनीय था । उसके प्रकोष्ठ (कोहनी के नीचे की भुजा) वर्तुलाकार थे और उभरे हुए चरणपृष्ठ उन्नत अगूंठों से सुशोभि थे। उसका ललाटपट्ट उन्नत और विस्तीर्ण था ? उसके कन्धों में अतुल बल समाहित था । उसके तालु, जीभ, नेत्र, हथेलियाँ और अधर ताम्र वर्ण के थे। उसकी दन्तपंक्ति और नखतल श्वेत वर्ण के थे। उसके रोम स्वर्णाभ थे। उसकी नाभि गहरी और कान के छेद बड़े थे। उसका वक्षःस्थल विशाल और कटिभाग तथा पेट पतला था । मध्यभाग संकीर्ण, भुजाएँ दीर्घ तथा कान सन्तुलित आकार के थे । उसकी नाक की बनावट चम्पा के फूल को मात करती थी। उसके बाल नीले, चिकने और घुंघराले थे। वह अपने अंग-सौन्दर्य से साक्षात् कामदेव का अवतार प्रतीत होता था । महाकवि पुष्पदन्त द्वारा अंकित नागकुमार का यह रूप-सौन्दर्य केवल नागकुमार का ही नहीं है, अपितु यह राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक भारतीय युवा के रूप-सौन्दर्य का प्रतिनिधित्व करता है। महाकवि ने नागकुमार के चरित्र को अवश्य ही एक राष्ट्रीय चरित्र के रूप में निरूपित किया । महाकवि की इस राष्ट्रीय चेतना में कठोपनिषद् की यह वाणी अनुनादित है 'रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव । ' अवश्य ही महाकवि का यह सौन्दर्य चिन्तन व्यष्टिमूलक नहीं, समष्टिपरक है । कविर्मनीषी पुष्पदन्त परिभू और स्वयम्भू हैं इसलिए उनका उद्देश्य सौन्दर्य के किसी अंश को केवल ऐन्द्रिय प्रत्यक्ष करा देना नहीं है, न ही सौन्दर्य को उन्होंने नारी या पुरुष की शारीरिक सीमाओं में आबद्ध किया है, अपितु इससे ऊपर निस्सीम सौन्दर्य की व्यापक अवतारणा की है। उनके सौन्दर्य-चिंतन ने लघु से विराट्, अणिमा से तनिमा की ओर प्रस्थान किया है। — प्रस्तुत लेख में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा निरूपित उदात्त सौन्दर्य के दो-तीन प्रतिनिधि चित्रों का दिग्दर्शन कराया गया है। उदात्त प्रेमी महाकवि के इस चरितकाव्य में प्रकृति-सौन्दर्य के भी अनेक महार्घ चित्र अंकित हुए हैं। इस काव्य में हमारे देश की विपुल धरती पर फैली हुई प्रकृति के सौन्दर्य की सभी सरल-कुटिल रेखाएँ और उनके हल्के गहरे रंग समेकित रूप में प्राप्त होते -
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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