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________________ अपभ्रंश भारती 7 ऊरूथंभहिँ रइघरु अणेण, रेहइ मणिरसणातोरणेण । कडियलगरुयत्तणु तं पहाणु, जं धरियउ मयणणिहाणठाणु । मणि चिंतवंतु सयखंडु जाहि, तुच्छोयरि किह गंभीरणाहि । सोहिय ससिवयणहे तिवलिभंग, लायण्णजलहो णावइ तरंग । थणथड्ढत्तणु परमाणणासु, भुजजुयलउ कामुयकंठपासु । गीवहे गइवेयउ हिययहारि, बद्धउ चोरु व रूवावहारि । अहरुल्लउ वम्भहरसणिवासु, दंतहि णिज्जिउ मोत्तियविलासु । जइ भउहांकुडिलत्तणेण णर सरधणुरुहेण पहय मय । तो पुणु वि काइँ कुडिलत्तणहो सुंदरिसिरि धम्मिल्ल गय ॥ 1.17 अर्थात्, कनकपुर में उपस्थित वह मृगाक्षी वधू साक्षात् मदनलक्ष्मी के समान थी। उसके नखतल अपनी कान्ति से नक्षत्रपुंज की तरह प्रतीत होते थे और ऊँचे अंगूठे नखों के सौन्दर्य का बखान कर रहे थे। उसके मांसल टखनों का सौन्दर्य लोक-विजय की मन्त्रणा करता-सा प्रतीत होता था। उसके पैरों के नुपूर अपनी आवाज से उसकी जंघाओं का रूप-वर्णन कर रहे थे। उसके घुटनों की सन्धि के सौन्दर्य पर तो कामदेव का गुमान परवान चढ़ रहा था। ऊरु के स्तम्भों पर अवस्थित उसका रतिगृह मणिनिर्मित करधनी के तोरण से सुशोभित हो रहा था। उसका विशाल कटिभाग कामदेव का कोषागार होने के कारण अपना विशिष्ट मूल्य रखता था। उसके छोटे आकार के उदर में गहरी नाभि का विन्यास देखनेवालों के मन को शतधा विभक्त कर देता था। उस चन्द्रमुखी वधू की त्रिवली की भंगिमा लावण्य के जल में उठते तरंग के समान थी। उसके स्तनों की कठोरता में दूसरे के मान को नष्ट कर देने की शक्ति निहित थी। उसकी भुजाएँ कामियों के लिए कण्ठपाश थे। गले में सशोभित ग्रैवेयक (हारावली) उसके रूप को चरानेवालों के लिए बन्धनरज्जु के समान था। उसके अधरों पर कामरस छलक रहा था और दाँत मोतियों की चमक को पराजित कर रहे थे। उस वधू की भौंहों का कुटिल कामशर ही किसी को आहतकर मार डालने में समर्थ था, उसपर उस सुन्दरी के घुघराले बाल और भी अधिक प्राणहारक थे। महाकवि पुष्पदन्त ने उस रूपवती वधू को विशेष आभूषणों से अलंकृत नहीं किया है; क्योंकि प्रसिद्ध सौन्दर्यवादी महाकवि कालिदास की सौन्दर्य-विषयक यह उक्ति अवश्य ही उनके ध्यान में होगी - 'किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्'। अर्थात्, जो वस्तु निसर्ग-सुन्दर है, वह सर्वदा और सर्वत्र अलंकृत न किये जाने पर भी सुन्दर ही है। उस मधुर आकृतिवाली स्वयं अलंकारस्वरूपा वधू के लिए विशेष अलंकरण की आवश्यकता ही क्या थी? उसकी आकृति तो नैसर्गिक रूप से सुन्दर थी। ___ महाकवि द्वारा चित्रित नागकुमार की जलक्रीड़ा के दृश्य में भी अतिशय उदात्त आंगिक सौन्दर्य का बिम्बात्मक उद्भावन हुआ है। महाकवि पुष्पदन्त के परवर्ती (विक्रम की पन्द्रहवीं शती) और अवहट्ट के कालजयी काव्यकार महाकवि विद्यापति ने सद्यःस्नाती का जो चित्र अंकित किया है, 'णायकुमारचरिउ' के इस जलक्रीड़ा प्रसंग से उसका समानान्तर अध्ययन किया जा सकता है। पुष्पदन्त द्वारा चित्रित स्नान-दृश्य इस प्रकार है -
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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