________________
अपभ्रंश भारती7
33
नीचे-ऊपर उठनेवाली तरंगें बाहुओं की चित्रराग थीं। भ्रमर माला ही केश-कलाप। इस तरह बीच में मुख दिखाकर जाती हुई उस रेखा को देखकर माहेश्वर और लंकाधिपति दोनों को मोह और ज्वर उत्पन्न हो गया।
जल-क्रीड़ा-चित्रण में श्रृंगार रस द्वारा उत्प्रेक्षा अलंकार के प्रयोग ने रसासिक्त होकर हृदय को प्रफुल्लित बना दिया है। कोई (नारी) कोमल कमल से राजा पर प्रहार करती हुई क्रीड़ा करती थी तो कोई और किसी से।
कहें वि गज्झ जले अदधम्मिल्लउ । णं मयरहर-सिहरु-सोहिल्लउ ॥ कहें वि कसण रोमावलि दिट्ठी । काम-वेणि णं गलेंवि पइट्ठी ॥ कहे वि थणोवरि ललइ अहोरणु । णाइँ अणंगहों केरउ तोरणु ॥ 14.7 - किसी का जल से आधा निकला हुआ आभूषण मानो कामदेव के मुकुट-सदृश था। किसी के काली रोमावलि ऐसी थी मानो कामवेणी ही गलकर निकली हो। किसी के स्तन पर दुपट्टा ऐसा लगता था मानो कामदेव का ध्वज हो। . रेहइ सुन्दरि सहुँ सुन्दरेण । वर-करिणि णाइँ सहुँ कुञ्जरेण ॥
णं सीहिणि सहुँ पञ्चाणणेण । जियपउम णाई सहुँ लक्खणेण ॥
अह खणे खणे वणिज्जन्ति काइँ। णं पुणु वि पुणु वि ताइँ जें ताई ॥ 48.14 ___- (हनुमान और लंकासुन्दरी के विवाहोपरान्त) सुन्दर के साथ सुन्दरी ऐसी सुशोभित थी मानो सुन्दर गज के साथ हथिनी हो। मानो सिंह के साथ सिंहनी, मानो लक्ष्मण के साथ जितपद्मा। अथवा बार-बार क्या चर्चा की जाय उसके समान वही था।
रावण अन्त:पुर में प्रविष्ट हुआ। मंदोदरी को अभी-अभी अंगद ने मुक्त किया था। उस समय वह रावण को कैसी लगती है ? पउमचरिउकार के शब्दों में -
छुडु-छुडु आमेल्लिय अङ्गएण। णं कमलिणि मत्त-महागएण ॥ णं कुतवसि-वाणि जिणागमेण । णं णाइणि गरुड-विहंगमेण ‘णं दिणयर-सोह वराहवेण । णं पवर-महाडइ हुअवहेण ॥
णं ससहर-पडिम महग्गहेण । मम्भीसिय विज्जा-सङ्गहेण ॥ 72.14 - अंगद द्वारा शीघ्र ही मुक्त हुई वह (मंदोदरी) ऐसी दीख पड़ी मानो मद से झरते हुए गज ने कमलिनी को छोड़ा हो अथवा जिनागम ने किसी कु-तपस्वी की वाणी का विचार किया हो। मानो पक्षिराज गरुड़ नागिन पर टूट पड़ा हो अथवा दिनकर की शोभा मेघ ही टूट पड़ा हो अथवा महाग्रह ने चन्द्र-प्रतिमा को निगल लिया हो। - जहाँ कवि ने संयोग शृंगार रस के अन्तर्गत उत्प्रेक्षा अलंकार को चमत्कृत किया है वहीं पर विप्रलम्भ शृंगार रस के द्वारा उत्प्रेक्षा अलंकार की नवीनता में कमी नहीं है । हनुमान के पिता पवनञ्जय विवाहोपरान्त अपनी पत्नी अंजना का परित्याग कर देता है। वह बेचारी (पति के) विरह में दग्ध हो रही है -