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अपभ्रंश भारती 7
हनुमान और कुम्भकरण में द्वन्द्व-युद्ध प्रारंभ हुआ। दोनों के युद्ध में अवलोकनीय हैं.
घत्ता
- हनुमत को निशाचर ने पकड़ लिया मानो जिनवर ने सुमेरु पर्वत को उठा लिया हो। वह पैर से दबकर ऐसा निकला मानो पर्वत शिखर पर चढ़ा हो ।
घत्ता
लक्ष्मण और रावण के द्वन्द्व-युद्ध का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत पंक्तियों में द्रष्टव्य है - हंसें तोडिउ आरणालु। चल-जीहु वियड-दाढा - करालु ॥
णं मेरु-सिङ्गु सहुँ णिवडियउ । चन्द - दिवायर - मण्डलेंहिँ ॥ 75.17
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ताइँ वि तोडियइँ स-कलयलाइँ । णं दहवयणहो दुण्णय - फलाइँ ॥ तो वरि चयारि समुट्ठियाइँ । णं थल - कमलिणि-कमलइँ थियाइँ | पुणु अण्णइँ अट्ठ समुग्गयाइँ । णं फणसहो फणसइँ णिग्गयाइँ ॥ 75.18
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हणुवन्तु लइउ रयणीयरेंण । णं मेरु-महागिरि जिणवरेंण ॥ चरणेहिँ धरेवि उच्चाइयउ । णं गिरि- सिहरेंण चडावियउ ॥ 65.10
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प्रयुक्त उत्प्रेक्षाएँ
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जिह सीसइँ तिह हय वाहु-दण्ड । णं गरुडें विसहर कय दु-खण्ड ॥ सय सहस लक्ख अ-परिप्पमाण । एक्केक्कऍ तहि मि अणेय वाण ॥ गोह णं पारोह छिण्ण । णं सुर-करि-कर केण वि पइण्ण ॥ सव्वङ्गुलि सव्व-हुज्जलङ्ग । णं पंच-फणावलि थिय भुअङ्ग ॥ को विकरयलु सहइ स-मण्डलग्गु । णं तरुवर - पल्लउ लयहो लग्गु ॥ कवि सहइ सिल्लिम्मुह सङ्गमेण । णं लइड भुअङ्ग भुअङ्गमेण ॥ महि-मण्डलु मण्डि कर- सिरेहिँ छुडु खुडिएहिँ स-कोमलेहिँ ॥ रण- देवय अच्चिय लक्खणेण णाइँ स णालेहिँ उप्पलेहिँ ॥
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स-कुसुम-चन्दण-चच्चिक्कियङ्ग । णियणासु णाइँ दरिसिउ रहङ्गु ॥ हे तेण भमाडिज्जन्तएण जगु जे सव्वु णं भामियउ ॥ 75.20
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भंजन्तु असेसाउह - सयाइँ । णं तुहिणु दहन्तु सरोरुहाइँ ॥
परिभमिउ ति-वारउ तरल- तुङ्गु । णं मेरुहे पासेहिँ भाणु-विम्बु ॥ 75.21
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(लक्ष्मण ने खुरपे से रावण का सिर तोड़ दिया ।) मानो हंस ने कमलनाल तोड़ा हो। इसका (रावप्प का) सिर मुकुट के साथ पट्ट से अलंकृत था, वह चमकते हुए कुण्डलों के साथ ऐसा लगता था मानो चन्द्र और सूर्य मण्डलों सहित मेरुपर्वत-शिखर के साथ गिरा हो ।
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