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अपभ्रंश भारती 7
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युद्ध क्षेत्र के इसी क्रम में उत्प्रेक्षा अलंकार का अद्भुत एवं भयंकर चित्रण द्रष्टव्य है - केहि मि करि-कुम्भ. परमट्ठइँ। णं सङ्गाम-सिरिहे थणवट्टइँ ॥ केहि मि लइयइँ णर-सिर-पवर.। णं जयलच्छि-वरङ्गण-चमरइँ ॥ केहि मि हियइँ वला रिउ-छत्तइँ । णं जयसिरि-लीला-सयवत्तइँ ॥ केण वि खग्ग-लट्ठि परियड्ढिय । रण रक्खसहो जीह णं कड्ढिय ॥ केण वि करि-कुम्भत्थलु फाडिउ । णं रण-भवण-वारु उग्धाडिउ ॥
कत्थइ रुहिर-पवाहिणि धावइ । जाउ महाहउ पाउसु णावइ ॥ घत्ता - सोणिय-जल-पहरणग्गिएहिँ वसुहन्तराल-णहयल-गएहिँ ।
पज्जलइ वलइ धूमाइ रणु णं जुग-खय-काले काल-वयणु ॥ 74.13 - किसी (योद्धा) ने गजों के कुम्भस्थल नष्ट कर दिये मानो उन्होंने संग्रामरूपी लक्ष्मी ही नष्ट की हो। किसी ने विशाल नर-झुण्ड उतारे मानो विजयलक्ष्मी रूपी सुन्दरी के चँवर हों। किसी ने बलपूर्वक शत्रुओं के छत्र छीन लिये मानो विजयलक्ष्मी का लीला-कमल हो। किसी ने तलवाररूपी लाठी निकाल ली मानो युद्धरूपी राक्षस की जिह्वा ही निकाल ली हो। किसी ने गज का कुम्भस्थल फाड़ डाला मानो रणरूपी भवन का द्वार उखाड़ दिया हो। कहीं रक्त-धाराएं बह रही थीं मानो महापावस (ऋत) हो। वसन्धरा के विस्तार और नभ में व्याप्त शोणित जल तथा अस्त्रों की आग से युद्ध कभी जल उठता और कभी उठता-सा धुआँ ऐसा जान पड़ता था मानो युगान्त का काल मुख हो।
युद्ध-प्रांगण की धूल की इस व्यापकता से कवि को जब संतोष नहीं होता है और अपनी कला-शिल्प में कमी का अनुभव करता है तो पुनः लिखता है कि इसने (धूल ने) समस्त संसार को मैला कर दिया और सूर्य-मण्डल तक फैल गई। तब वह रवि किरणों से तप्त हो जाती है -
ताव रण-रउ भुवणु मइलन्तु । रवि-मण्डलु पइसरइ तहिँ मि सूर-कर-णियर-तत्तउ । पडिखलेवि दिसामुहेहिँ सुढिय-गत्तु णावइ णियत्तउ ॥ सुर-मुहाइँ अ-लहन्तउ थिउ हेट्ठामुहु । पलय-धूमकेउ व धूमन्त दिसामुहु । लक्खिज्जइ पल्लट्टन्तु रेणु। रण-वसहहो ] रोमन्थ-फेणु ॥ सोमित्तिहे रामहो रावणासु । णं सुरेहिँ विसज्जिउ कुसुम-वासु ॥ रणएविहें णं सुरवहु - जणेण ।धूमोहु दिण्णु णह-भायणेण ॥
सर-णियर-णिरन्तर-जज्जरङ्ग । णं धूलिहोवि णहु पडहुँ लग्गु ॥ घत्ता - मुअउ व पहरण-सय-सल्लियउ दड्ढु व कोवग्गिहें घल्लियउ ।
सहसत्ति समुज्जलु जाउ रणु खल-विरहिउ णं सज्जण-वयणु ॥ 74.14 -- उस युद्ध की धूल ने त्रिभुवन को मैला कर दिया जो सूर्य-मण्डल तक पहुँचकर तप्त हो गयी। वहाँ से पलटकर दिशारूपी मुखों में फैलने लगी। देवताओं का मुख न देख पाने के कारण