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अपभ्रंश भारती 7
साथ ही उसके विशिष्ट कर्मों से उसकी शक्ति का परिचय मिलता है -
तम-पुंज-देहेण । णं पलय-मेहेण ॥ 75.10 - श्याम शरीर रावण मानो प्रलयमेघ हो।
लक्ष्मण और अतुलनीय शक्ति एवं विशाल आकारवाले रावण का आरोप कभी विभिन्न प्रबल पराक्रमवाले जीव व निर्जीव उपमानों से करता हुआ (कवि) कहता है -
गय-गारुड-सन्दण कसण देह । उण्णइय णाई णहें पलय-मेह ॥ णं सीह महीहर - मत्थयत्थ । णं विंझ-संझ उअयाचलत्थ ॥
णं अंजण-महिहर विण्णिहूअ । णं णर-णिहेण थिय काल-दूय ॥ 75.13 - दोनों (लक्ष्मण और रावण) श्याम शरीरवाले ऐसे थे मानो आकाश में प्रलय मेघ हो अथवा मानो पहाड़ की चोटी पर सिंह, अथवा विंध्याचल और उदयाचल हों या अंजनागिरि के दो टुकड़े या मनुष्यरूपी कालदूत अथवा मानो पृथ्वी ने सूर्यरूपी अरुण-कमल तोड़ने के लिए अपने दोनों हाथ फैलाये हों। ___ कवि की नगर-वर्णन की पद्धति निराली है। उसकी वृत्ति एक तीर से अनेक शिकार करने जैसी है। उसके उपमान विविध एवं विभिन्न होते हैं । कथ्य आकर्षक एवं रोचक बनता जाता है।
दिठु णयरु जं जक्ख-समारिउ । णाइँ णहङ्गणु सूर-विहूसिउ ॥ पुणु वि पडीवउ णयरु णिहालिउ । णाइँ महावणु कुसुमोमालिउ ॥ णाइँ सुकइहे कव्वु पयइत्तिउ । णाई णरिन्द-चित्तु वहु - चित्तउ ॥
णाइँ सेण्णु रहवर हँ अमुक्कउ । णाइँ विवाह-गेहु स-चउक्कउ ॥ 28.6 - यक्ष द्वारा सँवारा हुआ वह नगर दिखाई पड़ा मानो आकाशरूपी आँगन में सूर्य सुशोभित हो। (उसने) पुनः लौटकर नगर को देखा मानो कुसुमों से युक्त महावन हो। मानो कुकवि का पद से युक्त काव्य (अथवा) मानो अनेक चित्रोंवाला राजा का चित्त हो। मानो श्रेष्ठ रथों से अमुक्त सेना हो, मानो चौक से पूरित विवाहित घर हो।
वियड-प्पय-छोहेहिँ पुणु पय१। णं केसरि मयगल-मइय-वटु ॥ कत्थइ कप्पदुम दिट्ठ तेण । णं पन्थिय थिय णयरासएण ॥ कत्थइ गोरसु सव्वहँ रसाहुँ । णं णिग्गउ माणु हरेंवि ताहुँ ॥
णं धउ हक्कारइ 'एहि एहि । भो लक्खण लहु जियपउम लेहि ॥ घत्ता - वारुब्भड - वयणें दीहिय-णयणे देउल - दाढा-भासुरेण ।
णं गिलिउ जणदणु असुर-विमद्दणु एन्तउ णयर-णिसायरेण ॥ 31.6 - (लक्ष्मण ने)विकट पद और क्षोभों से युक्त पुनः नगर में प्रवेश किया मानो सिंहस्वरूप मयगल महागज का नाश करनेवाला हो। कहीं पर कल्पवृक्ष दिखाई पड़ा मानो पथिक नगर की आशा में स्थित हों। कहीं पर सभी रसों से युक्त गोरस था मानो वह मानहरण हेतु ही निकला