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________________ 14 अपभ्रंश भारती 7 प्रेम सम्बन्धी लगभग सभी काव्यरूढ़ियों का योजनापूर्वक समावेश हमें रासों में देखने को मिलता है। ऋतुवर्णन और विरहानुभूति का चित्रण भी 'संदेशरासक' या 'ढोला-मारू रा दोहा' से हू-ब-हू मिलता है। हिन्दी प्रेमाख्यानक काव्यों पर अपभ्रंश के प्रबन्ध काव्यों का प्रभाव - जैन अपभ्रंश साहित्य में रास नामक अनेक रचनाएँ लिखी गयीं, जैसे - 'उपदेश रसायन रास' (जिनदत्त सूरि, संवत् 1295); 'पंचकल्याणक रास' (विनयचन्द), पंचपंडवचरित रास, भरतेश्वर बाहुबलि रासउ और बुद्धिरास (शालिभद्र सूरि), रेवन्तगिरि रास (विजयसेन सूरि), गय सुकुमार रास (देवेन्द्र सूरि), जंबूसामि रासु (धर्मसूरि), योगी रासु (जोइन्दु), समाधि रास (मुनि चरितसेन), सन्देश रासक (अब्दुल रहमान) आदि। अपभ्रंश के ये प्रबन्ध काव्य हिन्दी काव्यों के मेरुदण्ड हैं हिन्दी के प्रेमाख्यानक कवियों ने अपने प्रेमाख्यानों को अपभ्रंश के इन्हीं चरितकाव्यों के आधार पर लिखा है। अत: अपभ्रंश के इन काव्यों और प्रेमाख्यानक काव्यों में अद्भुत समानता है। उदाहरण के लिए अपभ्रंश के 'भविसयत्तकहा', 'जसहरचरिउ', 'करकंडचरिउ' तथा हिन्दी के सूफी प्रेमाख्यानक काव्यों यथा पद्मावत, मधुमालती, मृगावती आदि में अनेक समानताएँ देखी जा सकती हैं। सिद्धों और नाथपंथियों के अपभ्रंश भाषा में लिखित काव्य का हिन्दी सन्त काव्य पर स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित होता है। हिन्दी के सन्त कवियों ने लगभग उन्हीं रूढ़ियों, मान्यताओं एवं छन्दों को अपने काव्यों में प्रयुक्त किया है जो सिद्धों और नाथों के काव्यों में पायी जाती हैं। सद्गुरु की जो महिमा सन्त काव्य में मिलती है उसे हम सहजयानियों.वज्रयानियों और नाथपंथियों के अपभ्रंश साहित्य में भी पाते हैं। इसी तरह बौद्ध चर्यागीतों में जैसी पद रचना हैं वह कालान्तर में कबीर आदि सन्तों की रचनाओं में भी देखने को मिलती है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में - "वे ही पद, वे ही राग-रागनियाँ, वे ही दोहे, वे ही चौपाइयाँ कबीर आदि ने व्यवहार की हैं, जो उक्त मत के माननेवाले उनके पूर्ववर्ती सन्तों ने की थी।" डिंगल काव्य-परम्परा के माध्यम से भी कबीर आदि सन्तों पर अपभ्रंश साहित्य का प्रभाव पड़ा है। कबीर की साखियों में विरह की जो मार्मिक अभिव्यंजना देखने को मिलती है उसे अपभ्रंश साहित्य के अध्येता डिंगल काव्य, विशेषकर 'ढोला-मारू रा दोहा' से अत्यधिक प्रभावित मानते हैं । डा. नामवर सिंह कहते हैं - "कबीर के अनेक दोहे जो भावप्रवण और मार्मिक होते हैं, वे 'ढोला-मारू रा दोहा' में भी मिलते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि इन लोकप्रचलित दोहों को कबीर ने भक्तिपरक पानी देकर अपना लिया।" तुलसीदास के 'रामचरितमानस' पर स्वयम्भूरचित 'पउमचरिउ' का प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष प्रभाव अवश्य पड़ा है। महाकवि स्वयम्भू की तरह तुलसीदास ने भी प्रारम्भ में गुरु-वन्दना के बाद दुर्जनों और सज्जनों के सम्बन्ध में लिखकर रामकथा की तुलना सरोवर से की है। कथान्तर रूप में पूर्वकथा की योजना तथा श्रोता वक्ता के कई-कई जोड़े उपस्थित करना भी अपभ्रंश काव्यों जैसा ही है।
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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