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________________ अपभ्रंश भारती 7 'शब्दकल्पद्रुम' के अनुसार' - "अप+भ्रंश+घञ् ग्राम्य-भाषा।अपभाषा तत्पर्याय:अपशब्द इत्यमरः। पतनम्। अध:पतनम्। ध्वंसः। अधोगतिः।"'अप' उपसर्ग और 'भ्रंश' धातु दोनों का प्रयोग अध:पतन, गिरना, पतित या विकृत होना आदि के अर्थ में होता है। अतः अपभ्रंश का शाब्दिक अर्थ है - च्युत, भ्रष्ट, स्खलित, पतित, अशुद्ध, विकृत। डॉ. नामवर सिंह के शब्दों में - "भाषा के सामान्य मानदण्ड से जो शब्द-रूप च्युत हों, वे अपभ्रंश हैं।" प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में 'अपभ्रंश' और 'अपभ्रष्ट' दोनों नाम मिलते हैं। प्राकृत और अपभ्रंश की रचनाओं में अपभ्रंश के लिए अवहंस, अवब्भंस, अवहत्थ, अवहट, अवहट्ट, अवहठ, अवहट्ट का प्रयोग किया गया है। मैथिल कोकिल महाकवि विद्यापति ने अपभ्रंश को अवहट्ठा की संज्ञा दी है - देसिल बअना सब जन मिट्ठा। तें तैसन जंपओं अवहट्ठा। 'पउमचरिउ' में महाकवि स्वयम्भू अत्यन्त गर्वीले, स्वाभिमान दीप्त, स्वर में अपनी देशी भाषा अपभ्रंश को 'सामण्णभासा' (सामान्यजन की भाषा) और 'गामिल्लभासा' (ग्राम्य भाषा) कहते हैं - सामण्ण भास छुडु सावडउ। छुडु आगम-जुत्ति का वि घडउ। छुडु होन्तु सुहासिय-वयणाई। गामिल्लभास परिहरणाई ॥ 1.3.10-11 इन सभी अपभ्रंशमूलक शब्दों के अर्थ समान हैं पर भाषा के लिए 'अपभ्रंश' संज्ञा ही सर्वस्वीकृत है। तिरस्कारसूचक यह नाम संस्कृत के आचार्यों ने इस भाषा को दिया है। संस्कृत शब्द के 'साधु' रूपों के अतिरिक्त लोक तथा साहित्य में प्रचलित भिन्न शब्द-रूपों को महाभाष्य के रचयिता पतञ्जलि ने 'अपशब्द' या 'अपभ्रंश' संज्ञा दी और महर्षि प्रदत्त इस संज्ञा को बिना आपत्ति के सबों ने अनिच्छापूर्वक स्वीकार कर लिया। श्री रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार - "प्राकृत से बिगड़कर जो रूप बोलचाल की भाषा ने ग्रहण किया वह भी आगे चलकर कुछ पुराना पड़ गया और काव्य रचना के लिए रूढ़ हो गया। अपभ्रंश नाम उसी समय से चला। जबतक भाषा बोलचाल में थी तबतक वह भाषा या देशभाषा कहलाती रही, जब वह भी साहित्य की भाषा हो गयी तब उसके लिए अपभ्रंश शब्द का व्यवहार होने लगा।" संग्रहकार व्याडि 'अपभ्रंश' शब्द से भलीभाँति परिचित थे। पतञ्जलि (दूसरी शताब्दी ई.पू.) और भर्तृहरि (पाँचवीं शताब्दी) दोनों ने आचार्य व्याडि का नामोल्लेख किया है। महर्षि पतञ्जलि ने महाभाष्य में अपभ्रंश का स्पष्ट उल्लेख करते हुए लिखा है - "भूयांसोऽपशब्दाः, अल्पीयांसः शब्दा इति। एकैकस्य हि शब्दस्य बहवोऽपभ्रंशाः, तद्यथां गौरित्यस्य शब्दस्य गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका इत्येवमादयोऽपभ्रंशाः।" अर्थात् अपशब्द बहुत हैं और शब्द थोड़े हैं। एक-एक शब्द के बहुत से अपभ्रंश मिलते हैं, जैसे - 'गौः' शब्द के गावी, गोणी, गोता, गोपोतलिका और इसी प्रकार के अन्य शब्द अपभ्रंश हैं । स्पष्ट है कि पतञ्जलि ने अपभ्रंश का प्रयोग किसी भाषा के लिए नहीं किया है।
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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