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________________ अपभ्रंश साहित्य का पुनरवलोकन डॉ. सकलदेव शर्मा - अपभ्रंश को अधिकांश आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की जननी होने का श्रेय प्राप्त है । अपभ्रंश की कुक्षि से उत्पन्न होने के कारण हिन्दी का उससे अत्यन्त आन्तरिक और गहरा सम्बन्ध है । अत: राष्ट्रभाषा हिन्दी की मूल प्रकृति और प्रवृत्ति से परिचित होने के लिए अपभ्रंश भाषा और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन की अनिवार्यता सुधी अध्येताओं और अनुसंधित्सुओं के लिए हमेशा बनी रहेगी। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार - "हिन्दी साहित्य में अपभ्रंश की प्राय: पूरी परम्पराएँ ज्यों की त्यों सुरक्षित हैं।" कहना नहीं होगा कि अपभ्रंश के कालजयी कवियों ने अपनी महत्त्वपूर्ण रचनाओं के द्वारा अपभ्रंश के यशस्वी साहित्य और उसके महत्त्व को शताब्दियों के बाद भी अक्षुण्ण रखने में पूर्ण सफलता अर्जित की है। प्रस्तुत आलेख द्वारा अपभ्रंश के उद्भव विकास, उसके अमर रचनाकारों, उनकी महत्त्वपूर्ण रचनाओं, साहित्यिक अवदानों और हिन्दी साहित्य पर पड़े प्रभावों आदि से पाठकों को परिचित कराना हमें अभीष्ट है। 'अपभ्रंश' शब्द 'भ्रंश' धातु में 'अप' उपसर्ग और 'घञ्' प्रत्यय के योग से निष्पन्न हुआ है। 'वाचस्पत्य' में अपभ्रंश के विषय में कहा गया है - " अप + भ्रंश+घञ्, अप क्षरणे, अधःपतने। अपभ्रंशति स्वभावात्प्रच्यवते । अपभ्रंश कर्तरि अच् । साधु शब्दस्य शक्तिवैफल्यप्रयुक्तान्यथोच्चारणयुक्ते अपशब्दे त एव शक्तिवैफल्य प्रमादालसतादिभिः अन्यथोऽच्चरिताः शब्दा अपशब्दा इतीरिताः । अप शब्द अपवैपरीत्ये ।"
SR No.521855
Book TitleApbhramsa Bharti 1995 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1995
Total Pages110
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size8 MB
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