________________
66
अपभ्रंश-भारती 5-6
मुनि कनकामर विरचित करकण्डुचरिउ महाकाव्य का प्रधान प्रयोजन 'मोक्ष' पुरुषार्थ की सिद्धि करना, अतीन्द्रिय आनन्द की अनुभूति कराना रहा है। इस आनन्द की अनुभूति शान्त रस से ही हो सकती है। अतः कवि ने तत्त्वज्ञान, वैराग्य, हृदय-शुद्धि आदि विभावों; यम, नियम, अध्यात्म, ध्यान आदि अनुभावों एवं निर्वेद, स्मृति, धृति आदि व्यभिचारी भावों का वर्णन अनुप्रेक्षाओं के माध्यम से किया है और सहृदय का 'शम' स्थायी भाव उबुद्ध कर शान्तरस की अनुभूति करायी है।
कवि ने करकण्डुचरिउ में करकण्डु के वैराग्य प्रसंग में अनुप्रेक्षा का विस्तृत विवेचन किया है। यहाँ पर अनुप्रेक्षा के विषय में विचार किया जा रहा है।
अधिगतार्थस्य मनसाध्यासोऽनुप्रेक्षा अनुप्रेक्षा अर्थात् चिन्तन, बारम्बार चिन्तन। किसी विषय की गहराई में जाने के लिए उसके स्वरूप का बार-बार विचार करना ही अनुप्रेक्षा है। पं.दौलतरामजी ने अनुप्रेक्षा को वैराग्य उत्पन्न करनेवाली जननी कहा है -
मुनि सकलव्रती बड़भागी, भवभोगनतें वैरागी ।
वैराग्य उपावन माई, चिन्तें अनुप्रेक्षा भाई ॥ ' उनका कथन है कि जैसे पवन लगने से अग्नि प्रज्वलित होती है वैसे ही अनुप्रेक्षा के चिन्तन से समतारूपी सुख जागृत हो जाता है। जब यह जीव आत्मस्वरूप को पहचानकर उसी में लीन हो जाता है तब मोक्ष प्राप्त करता है। . शुभचन्द्राचार्य ने ज्ञानार्णव में अनुप्रेक्षा का महत्त्व निम्न शब्दों में प्रतिपादित किया है -
विध्याति कषायाग्नि विगलितरागो विलीयते ध्यान्तम् ।
उन्मिषति बोधदीपो हृदि पुंसां भावनाभ्यासात् ॥ ___ अनुप्रेक्षाओं के अभ्यास से जीवों की कषायाग्नि शान्त हो जाती है, राग गल जाता है और हृदय में ज्ञानरूपी दीपक विकसित हो जाता है।
वैराग्योत्पादक तत्त्वचिन्तन अनुप्रेक्षा है। इसे भावना भी कहा जाता है।
वैराग्यवर्धक बारह भावनाएं मुक्तिपथ का पाथेय तो हैं ही, लौकिक जीवन में भी अत्यन्त उपयोगी हैं। इष्ट-वियोग और अनिष्ट-संयोगों से उत्पन्न उद्वेगों को शान्त करनेवाली ये बारह भावनाएं व्यक्ति को विपत्तियों में धैर्य और सम्पत्तियों में विनम्रता प्रदान करती हैं, विषय-कषायों से विरक्त एवं धर्म में अनुरक्त रखती हैं। जीवन के मोह एवं मृत्यु के भय को क्षीण करती हैं, बहुमूल्य जीवन के एक-एक क्षण को आत्महित में संलग्न रह सार्थक कर लेने को निरन्तर प्रेरित करती हैं, जीवन के निर्माण में इनकी उपयोगिता असंदिग्ध है।
अनुप्रेक्षा बारह हैं - अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्रव, संवर, निर्जरा, लोक, बोधि दुर्लभ और धर्म। इनमें आरम्भ की छह भावनाएं वैराग्योत्पादक और अन्तिम