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________________ अपभ्रंश-भारती 5-6 45 संदेश-रासक : रूप-वर्णन और उपमा विधान संदेश-रासक के कवि श्री अद्दहमाण ने यद्यपि रूप-वर्णन के लिए अधिकांशतः परंपरागृहीत उपमानों का ही आश्रय लिया है, फिर भी उन्होंने अपने हृदय-रस से स्निग्ध करके उसे वास्तविक और हृदयस्पर्शी बना दिया है। कहीं-कहीं अद्दहमाण ने स्वच्छंद कल्पना-शक्ति का भी परिचय दिया है जो उनके संवेदनशील कवित्व का परिचायक है; जैसे केशों की उपमा अलिकुलमाला' से देने के पूर्व वे उसकी उपमा पिशुन की कुटिलता से देते हैं - अइकुडिल माइपिहुणा विविहतरंगिणिसु सलिलकल्लोला । किसणत्तणमि अलया अलिउलमाल व्व रेहति ॥32॥ 'संदेश-रासक' में एक ही स्त्री-पात्र होने के कारण केवल विरहिणी नायिका के ही रूपवर्णन का अवकाश है। यत्र-तत्र नगर या षड्ऋतु वर्णन के प्रसंग में साधारण स्त्रियों का वर्णन भी कवि ने लगे हाथों कर दिया है। उस प्रोषितपतिका का रूप-वर्णन भी जमकर एक ही स्थान पर किया गया है। अन्य स्थानों पर उसकी विरह-दशा की व्यंजना के लिए ही आनुषंगिकरूप से उसके रूप या शारीरिक चेष्टाओं का वर्णन किया गया है। .. द्वितीय प्रक्रम के प्रारंभ में ही विजयनगर की विरहिणी नायिका की अवस्था का वर्णन करते हुए कवि कहता है - विजयनगर की कोई ऐसी सुन्दरी रमणी जो ऊँचे, स्थिर और स्थूल स्तनोंवाली है, जिसकी कटि भिड़ के समान पतली है, जिसकी गति हंस के समान है और जिसका मुखमंडल दीन हो गया है, दीर्घतर अश्रुजल प्रवाह करती हुई पथ निहार रही है। स्वर्ण के समान अंगोंवाली उस रमणी का शरीर विरहाग्नि से इस प्रकार श्यामल हो गया है मानो राहु द्वारा चन्द्रमा सम्पूर्ण ग्रस लिया गया हो - विजयनयरहु कावि वररमणि, उत्तंगथिरथोरथणि, विरुडलक्कि, थयरट्ठपउहरि । दीणाणहि पहुणिहइ, जलपवाह पवहंति दीहरि । विरहग्गिहि कणयंगितणु तह सामलिमपवन्नु । णजइ राहि विडंबिअउ ताराहिवइ सउन्नु ॥24॥ किन्तु हृदय खोलकर उस नायिका के रूप-वर्णन का अवकाश कवि को तब मिलता है जब वह पथिक के पास पहुंचती है। पथिक ने नायिका को इस रूप में देखा - उस विरह-विदग्धा नायिका की अति कुटिल केशराशि नदी की जल-वीचियों के समान थी। वे कृष्णत्व के कारण भ्रमर-समूह की भांति लगती थीं। रात्रि के तम का नाश करनेवाले अमृतस्रावी पूर्णचन्द्र के समान उस रमणी का मुख निष्कलंकता में सूर्य के प्रतिबिम्ब के समान है। दीर्घतर रागयुक्त युगल लोचन मानो अरविन्द-दल हैं और तरुण कपोल दाडिम-कुसुम पुंज की भाँति सुन्दर हैं -
SR No.521854
Book TitleApbhramsa Bharti 1994 05 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Gyanchandra Khinduka, Gopichand Patni
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year1994
Total Pages90
LanguageSanskrit, Prakrit, Hindi
ClassificationMagazine, India_Apbhramsa Bharti, & India
File Size7 MB
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