________________
-
जय तुहुँ गइ तुहुँ मइ तुहुँ सरणु । तुहुँ माय वप्पु तुहुँ बन्धु-जणु ॥ तुहुँ परम-पक्खु परमत्ति - हरु । तुहुँ सव्वहुँ परहुँ पराहिपरु ॥
तुहुँ दंसणे णाणे चरित्रे थिउ । तुहुँ सयल - सुरासुरेहिँ णमिउ ॥ सिद्धन्ते मन्ते तुहुँ वायरणे । सज्झाएँ जाणे तुहुँ तवचरणे ॥
अरहन्तु बुद्ध तुहुँ हरि हरु वि तुहुँ अण्णाण - तमोह- रिउ । तुहुँ सुहुमु णिरञ्जणु परमपउ तुहुँ रवि वम्भु सयम्भु सिउ ॥ • महाकवि स्वयम्भू
-
जय हो, तुम मेरी गति हो, तुम मेरी बुद्धि हो, तुम मेरी शरण हो। तुम मेरे माँ-बाप हो, तुम बंधुजन हो। तुम परमपक्ष हो, दुर्मति के हरणकर्ता हो। तुम सबसे भिन्न हो, तुम परम आत्मा हो ।
तुम दर्शन, ज्ञान और चरित्र में स्थित हो । सुर-असुर तुम्हें नमन करते हैं । सिद्धान्त, मंत्र, व्याकरण, सन्ध्या, ध्यान और तपश्चरण में तुम (ध्येय) हो ।
अरहन्त, बुद्ध तुम हो, हरि-हर और अज्ञानरूपी तिमिर के रिपु (शत्रु) तुम हो। तुम सूक्ष्म, निरंजन और परमपद हो, तुम सूर्य, ब्रह्मा, स्वयंभू और शिव हो ।